पीयूष कुमार/ मुझे कृष्ण का गौपालक रूप बहुत प्रिय है. खासतौर से सूरदास और रसखान रचित. ब्रज के आलोक में जिस लोक का उन्होंने वर्णन किया है, वह अद्भुत है. 15वीं सदी में सूरदास के काव्य में गोपियां रास कर रही हैं. यह नागर समाज के हिसाब से क्रांतिकारी चित्रणContinue Reading

पीयूष कुमार/ छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी पहचान उसकी उदात्त संस्कृति है. यह संस्कृति यहां की लोकमान्यताओं और परंपराओं में आज भी अन्य जगहों के मुकाबले अधिक बची हुई है. यहां की हरियर धरती और समाज जो लंबे समय तक बाहरी प्रभाव से संक्रमित नहीं हुआ था, इस बचाव की बड़ीContinue Reading

पीयूष कुमार मनुष्य के स्थायी जीवन का आधार खेती है. भोजन की तलाश में आदिम युग की भटकन लंबे समय तक चली और तब जाकर इंसान को खेती में ठौर मिला है और उसके आधार पर अब तक की प्रगति दर्ज हुई है. जाहिर है, इसे प्रकृति के प्रति कृतज्ञताContinue Reading

पीयूष कुमार/ प्रकृति ने सभी के लिए बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति की व्यवस्था की है. बुद्धिशील मनुष्य के लिए यह आवश्यकता कम थी, अत: उसने स्वयं के लिए भोजन उत्पादन का उपाय खोजने का प्रयास किया. इसी क्रम में उसने कृषि प्रक्रिया का अविष्कार किया और यह उसके जीवन काContinue Reading

छत्तीसगढ़ गाथा डेस्क/ ‘मैं आज 68 साल की हो गई हूं. जब छोटी थी तब लड़कियों के लिए गाना-बजाना बहुत मुश्किल था. तब मैंने पंडवानी को गले लगाया क्योंकि मेरी हिम्मत बहुत बड़ी थी. मैंने ठान लिया था कि मुझे करना है मतलब करना है. दुनिया ने लाख ताने मारे,Continue Reading

पीयूष कुमार/ छेरछेरा छत्तीसगढ़ का स्थानीय त्योहार है. यह परम्परा दान से जुड़ी है. यहां दान याचक और दाता के भाव का नहीं है, बल्कि जो अपने पास है, वह बांटने की भावना से पूरित है. छत्तीसगढ़ में ‘छेरछेरा’ के आरंभ को लेकर रतनपुर के राजा कल्याण साय की लोककथाContinue Reading