कृष्ण का लोक, प्रेम और हम

 पीयूष कुमार/

मुझे कृष्ण का गौपालक रूप बहुत प्रिय है. खासतौर से सूरदास और रसखान रचित. ब्रज के आलोक में जिस लोक का उन्होंने वर्णन किया है, वह अद्भुत है. 15वीं सदी में सूरदास के काव्य में गोपियां रास कर रही हैं. यह नागर समाज के हिसाब से क्रांतिकारी चित्रण है. ऐसा इसलिए कि भारत के गांवों में पहले प्रेम सहज रहा है. अब प्रेम फिल्मों के कारण ‘करने’ के भाव मे ज्यादा है. इस चित्रण में गोपियों के प्रेम को रास की दृष्टि से न देखें, बल्कि ‘भ्रमरगीतसार’ की दृष्टि से देखें. उद्धव के ब्रह्मज्ञान को जिस तरह उन्होंने लौकिक प्रेम के आगे खारिज किया है, उसकी कोई मिसाल नही है.

कृष्ण शब्द किसन और भी पीछे किसान शब्द से सम्बंधित हो सकता है, जिसमें लोकजीवन का एक नायक, एक युवा का चित्रण है, जो बाद में विभिन्न क्षेपकों के माध्यम से चमत्कारिक रूप में जुड़ता आया है. यह एकमात्र चरित्र है, जिसने योग और भोग को एक साथ निभाया है. सूर साहित्य में राधा-कृष्ण संवाद मुझे याद नहीं आता, पर पंडित सुंदरलाल शर्मा की छत्तीसगढ़ी में लिखित ‘दानलीला’ में जो संवाद हैं, वह पूरे राधा-कृष्ण के हैं. राधा का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य स्पष्ट रूप से 12वीं सदी में प्राप्त होता है. हालांकि उसकी कल्पना कुछ और पहले की है. कृष्ण का लोक नदी, मैदान, पशुपालन, पनघट, अल्हड़ता और प्रेम, जो समाज द्वारा स्वीकृत हो, जिसके लिए प्रेमियों को प्रताड़ित नहीं किया जाता हो, वह है. यहां कृष्ण के साथ गोपियां या राधा भी हर युवा के प्रतीक हैं.

समाज मे यह जबरदस्त कंट्रास्ट दिखता है कि पौराणिक चरित्रों की बात तो बहुत होती है पर जमीन पर वैसी उदारता, उत्सर्ग, प्रेम नहीं दिखाई पड़ता. जरा सा खांचे से बाहर हुआ कि निषेध शुरू हो जाता है. यहां प्रेमी जोड़े के लिंच होने की प्रबल संभावना बनी रहती है. हम प्रेम को लेकर सहज भी नहीं हैं. प्रेम हमारे लिए या तो वासनापूर्ण है या निषेध का विषय. वह जो जोड़ता है, रचता है, वह प्रेम अभी पूरा आना बाकी है. आप कृष्ण को मानते हैं तो सृजन करेंगे, प्रेम का सम्मान करेंगे, वरना यह सब एक दिखावे से अधिक कुछ नहीं है.

जन्माष्टमी के इस अवसर पर दानिश इकबाल के शब्दों में बधाई स्वीकार करें…
इमाम ए इश्क,
साहिबे किताबुल अमल,
सरदारे खानवादा-ए-पांडव,
जद्दे अमजद कबीला-ए-यादव,
फातहे जंगे अजीम,
मददगारे मिस्कीन,

हजरत जनाब देवकीनंदन कृष्ण उर्फ कन्हैयालाल इब्ने जनाब वासुदेव वृंदावन वाले के यौमे विलादत पर तमाम अहले वतन को पुरखुलूस मुबारकबाद! जन्माष्टमी मुबारक.
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