एशिया का दूसरा सबसे बड़ा चर्च जशपुर के कुनकुरी में, 10 हजार लोग एक साथ करते हैं प्रार्थना

छत्तीसगढ़ गाथा डेस्क/

त्तीसगढ़ में एक से बढ़कर एक चीजें हैं, जिनकी वजहों को राज्य को देश-दुनिया में जाना जाता है. उन्हीं में एक है जशपुर जिले के कुनकुरी स्थित रोजरी की महारानी महागिरजाघर. इसे एशिया का दूसरा सबसे बड़ा चर्च माना जाता है.

यहां एक साथ 10 हजार लोग खड़े होकर प्रार्थना कर सकते हैं. जर्मन वास्तुकला पर आधारित इस महागिरजाघर की खासियत है कि यह लोहे की एक बीम पर टिका है. चर्च की सुंदरता और भव्यता को देखने लाखों पर्यटक हर साल पहुंचते हैं.

25 दिसंबर को ईसाइयों का सबसे बड़ा त्यौहार क्रिसमस है. इस मौके पर छत्तीसगढ़ गाथा डॉट कॉम अपने पाठकों को कुनकुरी के महागिरजाघर से जुड़ी कुछ रोचक और महत्वपूर्ण बातें बताने जा रहा है…

रोजरी की महारानी महागिरजाघर का निर्माण 1962 में शुरू हुआ था. बताया जाता है, इसकी नीव तैयार होने में ही दो साल लग गए थे. चर्च का निर्माण 1979 में पूर्ण हुआ. कुछ वजहों से निर्माण कार्य को दो बार रुका भी. इसका लोकार्पण 1982 में किया गया.

इस महागिरजाघर के संस्थापक बिशप स्तानिसलास तिग्गा थे. जशपुर जिले में जब ईसाई समुदाय के लिए प्रार्थना भवन की आवश्यकता महसूस हुई, तब इस सुंदर और भव्य महागिरजाघर की योजना बनाई गई.

बताया जाता है, एक बार बिशप तिग्गा मुंबई यात्रा पर थे. वहां उन्होंने एक सुंदर गिरजाघर देखा. उन्हें वह गिरजाघर बहुत पसंद आया. उन्होंने उसी समय सोच लिया कि इसी की तरह एक सुंदर और भव्य गिरजाघर का निर्माण जशपुर में किया जाएगा.

बिशप तिग्गा ने फौरन उस गिरजाघर के आर्कीटेक्चर फादर जेएम कार्सी एसजे से संपर्क किया. वे बेल्जियम के रहने वाले थे. बिशप तिग्गा कुछ दिनों बाद उनसे मिलने गए. फादर कार्सी ने उन्हें नक्शा बनाकर दिया. इसके बाद कुनकुरी में महागिरजाघर का निर्माण शुरू हुआ.

महागिरजाघर का निर्माण पास के ही सतपुड़िया पर्वतमाला के चुड़िया पहाड़ के पत्थरों और मध्यप्रदेश के बालाघाट से लाए गए सफेद संगमरमर पत्थरों से किया गया है.

बनने में लगे 17 वर्ष

महागिरजाघर को बनने में कुल 17 वर्ष लगे. इसके निर्माण में दो बार अवरोध उत्पन्न हुआ. पहली बार 1965 से 1969 तक इसका निर्माण कार्य बंद रहा. बताया जाता है, निमार्ण में उपयोग लाए जाने वाले पत्थरों में यूरेनियम के अंश होने के संकेत मिले, जो मनुष्य से स्वास्थ्य के लिए हानिकारक थे. जिसके बाद निर्माण कार्य रोक दिया गया.

1969 में विशेषज्ञों ने पाया कि पत्थरों में यूरेनियम की मात्रा नहीं के बराबर है. इसके बाद निर्माण कार्य पुन: प्रारंभ हुआ.

दूसरी बार धन की कमी के कारण 1971 से 1978 का महागिरजाघर का निर्माण कार्य रुक गया. एक परोपकारी संस्था और स्थानीय लोगों की मदद से इसका निर्माण कार्य फिर से शुरू हो पाया. बताया जाता है, इसके निर्माण में तत्कालीन रायगढ़ के धर्मप्रांत के प्रत्येक परिवार से सहयोग राशि प्राप्त हुई थी और लोगों ने श्रमदान किया था.

27 अक्टूबर 1979 में इसका लोकार्पण किया गया. इसका नाम रोजरी की महारानी महागिरजाघर रखा गया, जो इस धर्मप्रांत की संरक्षिका हैं.

सात संस्कारों का देता है संदेश

कुनकुरी का महागिरजाघर वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है. यह अन्य गिरजाघरों से भव्य एवं अत्यंत सुंदर है. इसका निर्माण जर्मन वास्तुकला के आधार पर किया गया है. इसकी सुंदरता, सजावट, प्रार्थना भव्यता की चर्चा देशभर में होती है.

महागिरजाघर अर्धगोलाकार है. इससे ऐसा प्रतीत होता है कि ईश्वर बाहें फैलाकर सभी मनुष्यों को गले लगाने के लिए पास बुला रहे हैं.

महागिरजाघर में गगनचुम्मी व शानदार मीनार है. मीनार का क्रूस ईसा मसीह का प्रतीक है. इसकी घंटी केरल के एरनाकुलम से मंगाकर लगाई गई है.

महागिरजाघर में सात छतें हैं. बाइबिल के संदर्भ में सात को पूर्णता का प्रतीक माना जाता है. सप्ताह में सात दिन होते हैं. कलीसिया में सात संस्कार होते हैं. कहा जाता है, ईश्वर ने छह दिनों में दुनिया बनाई और सातवें दिन को पवित्र माना.

ईसाई धर्म के सात संस्कारों की झांकिया महागिरजाघर के भीतरी गोलार्ध में लोहे की जालियों में अंकित हैं. सात संस्कारों में बपतिस्मा, परम प्रसाद, पाप स्वीकरण, दृढ़ीकरण, पुरोहितीकरण, अंति और मिलन शामिल हैं. महागिरजाघर में सात दरवाजे हैं, जो हमेशा खुले रहते हैं.

धार्मिक सद्भाव का प्रतीक

चर्च में स्थापित जीजस क्राइस्ट की मूर्ति के समीप सभी धर्मों के प्रतीक चिन्ह अंकित हैं, जो धार्मिक सद्भाव का संदेश देते हैं.

महागिरजाघर का कुल क्षेत्रफल 3401.47 वर्ग फीट है. इसकी भीतरी भाग 1630.21 एवं बाहरी भाग 1771.26 वर्ग फीट है. वेदी का निर्माण 46.90 वर्ग फीट में किया गया है.

जशपुर जिले की आबादी करीब 8 लाख 50 हजार है. इनमें से करीब 2 लाख 50 हजार संख्या ईसाई समुदाय के लोगों की है.

हर कोने से दिखती है वेदी

महागिरजाघर को इस तरह से बनाया गया है कि किसी भी जगह या कोने पर खड़े होने पर भी वेदी और पुरोहित को देखा जा सकता है. यह वास्तुकला का बेहद ही बेजोड़ नमूना है.

चार बिशपों की कब्र मौजूद

महागिराजघर की नीव में चार बिशपों की कब्र है. बिशप ओस्कर सेभेरिन, बिशप स्तानिस्लास तिग्गा, बिशप फ्रांसिस एक्का डीडी और बिशप भिक्टोर किंडो डीडी को मृत्य के बाद महागिरजाघर के अंदर ही दफनाया गया है.

5 लाख से अधिक पर्यटक पहुंचते हैं हर साल

महागिरजाघर के प्रभारी फादर तरसीसीयुस केरकेट्टा ने बताया कि चर्च को देखने सालभर में करीब पांच लाख पर्यटक पहुंचते हैं. दूसरे राज्यों के अलावा विदेशी पर्यटक भी महागिरजाघर की भव्यता को देखने आते हैं.

पिछले वर्ष महागिरजाघर का स्वर्ण जयंती वर्ष मनाया गया. इस दौरान करीब 10 लाख लोग इसकी सुंदरता औ्र भव्यता को निहारने पहुंचे थे. हर साल दिसंबर में क्रिसमस के मौके पर भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं.

चर्च ने बसा दिया शहर

क्या केवल किसी चर्च की स्थापना से पूरा एक शहर बस सकता है. कुनकुरी के साथ ऐसा ही हुआ है. बताया जाता है, कुनकुरी एक छोटा का गांव हुआ करता था, लेकिन महागिरजाघर के बनने के बाद बसाहट होती गई और आज एक शहर ने आकार ले लिया है.

कुनकुरी से 11 किलोमीटर दूर गिनाबहार में 1917 में इलाके का पहला चर्च बना था. उस वक्त कुनकुरी एक छोटा सा गांव हुआ करता था. कुनकुरी महागिरजाघर बनने के बाद यहां लोयोला स्कूल और हॉलीक्रॉस अस्पताल की स्थापना की गई. इसके बाद आसपास की आबादी बढ़ने लगी.

1910 में आए थे बेल्जियन मिशनरीज

लोयला कॉलेज के प्राचार्य डॉ. फादर ओस्कर तिर्की बताते हैं, आज से करीब 110 साल पहले 1910 के आसपास जशपुर जिले में सबसे पहले बेल्जियन मिशनरीज आए थे. वे मनोरा ब्लॉक खड़इकोना में सर्वप्रथम आकर बसे. इसके बाद धीरे-धीरे अन्य लोग आते गए और ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार होते गया.

नागालैंड में है एशिया का सबसे बड़ा चर्च

एशिया का सबसे बड़ा चर्च सुमी बैप्टिस्ट चर्च जूनहेबोटो नागालैंड में स्थित है, वहीं दुनिया का सबसे बड़ा चर्च सेंट बेसिलिका चर्च वेटिकन सिटी में है.

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