छत्तीसगढ़ गाथा डेस्क/
मिनीमाता छत्तीसगढ़ अंचल की पहली महिला सांसद व कर्मठ समाज सुधारक थीं. वे अस्पृश्यता यानी छुआछूत को समाज के लिए अभिशाप मानती थीं और देश के सर्वांगीण विकास के लिए इसे पूरी तरह से खत्म करना चाहती थीं. यही कारण था कि उन्होंने संसद में ऐतिहासिक अस्पृश्यता निवारण विधेयक प्रस्तुत किया जो पारित भी हुआ.
मिनी माता का जन्म 13 मार्च 1913 में असम के नुवागांव जिले के जमुनासुख गांव में हुआ. उनका असली नाम मीनाक्षी था. पिता का नाम महंत बुधारीदास व माता का नाम देवमती था. इनके नाना छत्तीसगढ़ के पंडरिया जमीदारी के सगोना गांव के निवासी थे.
1901 से 1910 के मध्य छत्तीसगढ़ अंचल में भीषण अकाल पड़ा. तब मीनाक्षी के नानाजी आजीविका की तलाश में परिवार सहित असम चले गए और वहां के चाय बागानों में काम करने लगे. मीनाक्षी ने असम में सातवीं कक्षा तक की पढ़ाई की. तब देश अंग्रेजों का गुलाम था. मीनाक्षी कम उम्र में ही गुलामी का मतलब और आजादी का महत्व जान चुकी थीं. बचपन में वे अपने साथियों के साथ विदेशी वस्त्रों की होली जलाने और स्वादेशी का प्रचार-प्रसार किया करती थीं.
मीनाक्षी के जीवन में नया मोड तब आया, जब सतनामी समाज के प्रमुख गुरु अगमदास का धर्म प्रचार के सिलसिले में असम जाना हुआ. गुरु अगमदास का कोई पुत्र नहीं था, इससे समाज को गुरु के उत्तराधिकारी की चिंता सता रही थी. गुरु अगमदास ने मीनाक्षी को अपनी जीवनसंगिनी के रूप में चुना और 1932 में उनसे विधिवत विवाह किया. उसके बाद से मीनाक्षी मिनीमाता के नाम से समाज में प्रतिष्ठित हुईं.
विवाह के बाद मिनीमाता रायपुर आ गईं. यहां उन्होंने अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की. हिंदी, असमिया, अंग्रेजी, बांग्ला तथा छत्तीसगढ़ी भाषा पर उनका अच्छा-खासा अधिकार था. गुरु अगमदास भी महान देशभक्त और समाज सुधारक थे. वे राष्ट्रीय आंदोलनों में भी सक्रिय रूप से भाग ले रहे थे. गुरु अगमदास की प्रेरणा और प्रोत्साहन से सतनामी समाज के सैकड़ों युवा राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े थे. रायपुर स्थित उनका घर सत्याग्रहियों का अड्डा बन गया था. पं. सुंदरलाल शर्मा, डॉ. राधाबाई, ठा. प्यारेलाल सिंह, पं. रविशंकर शुक्ल, डॉ. खूबचंद बघेल जैसे नेता अक्सर उनके घर आते रहते थे.
देश आजाद होने के बाद गुरु अगमदास सांसद चुने गए. परंतु 1951 में उनका अचानक निधन हो गया. उनके निधन के बाद मध्यावधि चुनाव हुए. इस चुनाव में पं. रविशंकर शुक्ल ने मिनीमाता को खड़े होने के लिए मना लिया. मिनीमाता रायपुर के सांसद चुनी गईं. तब उनके बेटे विजय कुमार बहुत छोटे थे. परंतु उन्होंने घरेलू और सामाजिक जिम्मेदारी दोनों का बखूबी निभाया. वे 1952 में रायपुर, 1957 में बलौदाबाजार और 1967 में जांजगीर चांपा क्षेत्र से लगातार तीन बार लोकसभा के लिए चुनी गईं.
मिनीमाता ने देश की संसद में महिलाओं की दशा सुधारने निरंतर आवाज बुलंद की. उन्होंने महिला उत्पीड़न, दहेज प्रथा, अन्याय, बेमेल विवाह तथा बालिका विवाह का कड़ा विरोध किया. उन्होंने अपने निर्देशन में कई विधवा पुनर्विवाह भी कराए. बाल विवाह तथा बेमेल विवाह के विरुद्ध कड़े निर्देश जारी करवाए. उन्होंने रायपुर में सतनामी आश्रम की स्थापना की.
मिनीमाना ने स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में भी काम किया. वे अपनी सभाओं तथा सभी मिलने-जुलने वाले लोगों से अपनी बेटियों को शिक्षित करने का अह्वान करती थीं. उन्होंने कई गरीब, जरूरतमंद बच्चों को अपने घर पर रखा और पढ़ा-लिखाकर आत्मनिर्भर बनाया. उन्होंने छत्तीसगढ़ मजदूर संघ का गठन किया था. भिलाई स्पात संयत्र में क्षेत्र के स्थानीय निवासियों को रोगजार उपलब्ध कराने के दिशा में भी उल्लेखनीय कार्य किया.
उन्होंने गरीबी को बहुत करीब से देखा और भोगा था. इसी कारण वे हमेशा श्रमवीरों की हिमायती थीं. मिनीमाता अस्पृश्यता उन्मूलन तथा स्वच्छता अभियान में सदैव आगे रहती थीं. उन्होंने अखिल भारतीय हरिजन सेवक संघ तथा सतनामी सहासमिति की भी स्थापना की. वे भारतीय दलित संघ के महिला शाखा की उपाध्यक्ष भी थीं. मिनीमाता की नि: स्वार्थ समाजसेवा से पं. जवाहर लाल नेहरू, डॉ. भीमराव अंबेडकर, बाबू जगजीवन राम, इंदिरा गांधी व पं. रविशंकर शुक्ल जैसे देश के शीर्ष नेता बेहद प्रभावित थे और उन्हें सदैव प्रोत्साहित भी करते थे.
मिनीनाता के ह्रदय में सभी धर्मों के लिए समान रूप से आदर भाव था. वे सभी लोगों ने एक-दूसरे का आदर व सम्मान करने के लिए कहती थीं. उनका द्वार सबके लिए खुला रहता था. वे नफरत, भेदभाव, हिंसा और दमन का विरोध करती थीं. यही कारण है कि हर जाति और वर्ग के लोग उन्हें भरपूर सम्मान देते हैं.
कहा जाता है कि जब मिनीमाता सांसद के रूप में दिल्ली में रहती थीं तो उनका निवास एक धर्मशाला जैसा होता था. छत्तीसगढ़ अंचल से दिल्ली जाने वाले किसी भी व्यक्ति को वहां ठहरने की चिंता नहीं होती थी. हर जाति व वर्ग के लोग वहां पहुंचते थे. सबका सत्कार करने के साथ उनकी समस्याओं को दूर करने के लिए भी वे सदैव तत्पर रहती थीं. बताते हैं कि, प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीकांत वर्मा लंबे समय तक दिल्ली स्थित मिनीमाता के घर पर रहे.
मिनीमाता स्वंय बहुत बढ़ी-लिखी नहीं थी. परंतु उन्होंने समाज में शिक्षा के महत्व को भलीभांति समझा और उसके प्रचार-प्रसार में अपना पूरा जीवन लगा दिया. उन्होंने क्षेत्र के अशिक्षित और पिछड़े वर्ग के लोगों को शिक्षा का महत्व समझाया. छत्तीसगढ़ के प्रतिभाशाली कलाकारों को संरक्षण और सहयोग प्रदान किया.
‘सादा जीवन और उच्च विचार’ उनके जीवन का आदर्श रहा. संत गुरु घासीदास के आदेश और उपदेशों का अनुशरण करते हुए वे निरंतर लोगों की सेवा करती रहीं. अपने सरल स्वभाव, मृदुभाषी एवं मिनलसार गुणों के कारण उन्हें ‘माताजी’ के नाम से संबोधित किया जाता था.
11 अगस्त 1972 में भोपाल से दिल्ली जाते हुए पालम हवाई अड्डे के पास विमान दुर्घटना में उनका दु:खद निधन हो गया. राज्य स्थापना के बाद छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में महिला उत्थान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए राज्य स्तरीय मिनीमाता सम्मान स्थापित किया है.
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