छत्तीसगढ़ गाथा डेस्क/
26 साल के कुणाल साहू की कहानी अपने सपनों का पीछा करने वाले एक जुनूनी नौजवान की कहानी है. जिसने नाकामियों से हार नहीं मानी और आज कामयाबी के नए नए पड़ाव पार करते जा रहा है. पढ़ाई से वे एक मेकेनिकल इंजीनियर हैं. लेकिन पैसे कमाने के लिए उन्होंने मशरूम उगाना तय किया. पहली बार दस बैग में मशरूम उगाने की कोशिश की. नाकाम रहे. इससे सीखा और अगली बार फिर कोशिश की. जो आधी कामयाब रही. फिर सीखा फिर कोशिश की. आज वे चार हजार बैग में मशरूम उगाते हैं. लाखों की आमदनी हो रही है. मशरूम से कुकीज, अचार, बड़ी, पापड़ बना रहे हैं. उनका व्यवसाय बढ़ता जा रहा है. आज वे अपने संपर्क में आने वाले युवाओं के लिए एक रोल मॉडल हैं.
कुणाल राजनांदगांव के पैरी गांव के रहने वाले हैं. उनके पिता रायपुर की एक निजी कंपनी में ऑपरेटर थे. कुणाल की स्कूली शिक्षा शुक्रदया विद्या निकेतन मोहबा बाजार में हुई. 2012 में बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद ज्यादातर बच्चों की तरह वे भी कोटा जाकर आईआईटी जेईई की तैयारी करना चाहते थे, लेकिन पैसों की कमी बाधा बन गई. फिर भी उन्होंने खुद की मेहनत से जेईई मेन्स क्लियर किया और एडमिशन के लिए एनआईटी मणिपुर से बुलावा आया, लेकिन बेटे को दूर भेजने से मां ने मना कर दिया. उन्होंने रुंगटा कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, रायपुर से 2017 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की, लेकिन उनकी जिंदगी का टर्निंग पाइंट साल 2016 रहा.
कुणाल बताते हैं ‘2016 में कॉलेज की ओर से आईआईटी बाम्बे में आंत्रप्रेन्योर समिट में शामिल होने का मौका मिला. इसमें देश-दुनिया से बड़े-बड़े आंत्रप्रेन्योर शामिल हुए थे. दो दिवसीय उस समिट में अलग-अलग लोगों की जर्नी जानने को मिली. उनसे मुलाकात और उन्हें सुनने के बाद ठान लिया कि नौकरी नहीं करना है. करना है तो खुद का बिजनेस ही करना है.’
समिट से लौटकर आने के बाद कुणाल के दिमाग में बिजनेस को लेकर ख्याल उमड़ने लगा. हालांकि तब उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या बिजनेस किया जाए. 2016 से 2017 तक करीब एक साल तक इस बारे में वे सोचते और खोजबीन करते रहे, पर कुछ खास हाथ नहीं लगा.
जून 2017 में कुणाल की इंजीनिरिंग पूरी हुई. उसी साल अगस्त में कंपनी बंद होने से पिताजी की नौकरी चली गई और वे गंभीर रूप से बीमार भी पड़ गए. तीन छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी अचानक कुणाल के कंधों पर आ गई.
कुणाल को पैसों की सख्त जरूरत थी. कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने स्कूल के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया. पिताजी की तबियत थोड़ी ठीक हुई तो उन्हें गांव भेज दिया गया. पिताजी के गांव में 10 एकड़ खेत हैं, जिस पर उन्होंने खेती करना शुरू किया. उनके खेत में सिर्फ धान की फसल होती है. कुणाल ने सोचना शुरू किया कि धान के अलावा और क्या लगाया जा सकता है, जिससे मुनाफा ज्यादा हो.
2018 में वे इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में लगा किसान मेला देखने गए. वहां उन्होंने एलोवेरा की खेती के बारे में जानकारी जुटाई. वहीं उनकी मुलाकात वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. अरुण त्रिपाठी से हुई. उन्होंने कुणाल की बातों को ध्यान से सुना और जल्द ही उनके लिए कोई नई तरकीब निकालने की बात कही.
कुछ दिनों बाद डॉ. त्रिपाठी ने कुणाल को फोन किया और वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन की ट्रेनिंग लेने को कहा. ट्रेनिंग इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में ही स्किल इंडिया के तहत मिनिस्ट्री ऑफ फार्मर वेलफेयर की ओर से आयोजित की गई थी. कुणाल ने ट्रेनिंग में हिस्सा लिया. वे गांवों में विजिट करने गए. वहीं उन्हें ऑयस्टर मशरूम के बारे में भी जानकारी मिली. साथ ही वर्मी कम्पोस्ट के रॉ मटेरियल वर्मी वॉस के बारे में जाना. उन्हें पता चला कि वर्मी कम्पोस्ट और ऑयस्टर मशरूम दोनों के लिए 25-30 डिग्री सेल्सियस तामपान की जरूरत होती है. आर्द्रता (ह्यूमिडिटी) 80 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए. वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए केंचुए का इस्तेमाल होता है, जिनकी संख्या लगातार बढ़ती रहती है. इस तरह कुणाल को एक साथ चार चीजें करने का आइडिया मिला. उन्हें लगा कि यह काम तो किया जा सकता है. उन्होंने सारी तैयारी पेपर पर उतार ली, लेकिन उसे धरातल पर उतारना उतना आसान नहीं था. उन्होंने कई लोगों से अपना प्लान शेयर किया, लेकिन कहीं से कोई उम्मीद नहीं दिखी. ऐसे में भिलाई निवासी उनके जीजा महेंद्र कुमार साहू ने फोन किया और कहा कि यहां आओ. काम शुरू करते हैं.
कुणाल बाते हैं- ‘जीजाजी सेलूद (पाटन) के पास एक कोल्ड स्टोरेज बना रहे थे. उन्होंने उसी के बाजू में 1300 स्क्वेयर फीट जगह दे दी और कहा कि यहां काम करके देखते हैं. सारा खर्च उठाने के लिए भी वे तैयार हो गए. उन्हें मुझ पर मेरे आइडिया पर पूरा भरोसा था.’
कुणाल गर्मी के दिनों में मशरूम उगाने जा रहे थे, जो बेहद मुश्किल काम था. उन्होंने 1300 स्क्वेयर फीट में एक शेड बनवाया और उसके नीचे वर्मी कम्पोस्ट का सेटअप तैयार किया. ऊपर मशरूम के हैंगिंग बैग लगाने शुरू किए गए. तब तक उन्होंने मशरूम उत्पादन की कोई ट्रेनिंग नहीं ली थी, केवल जानकारों से पूछताछ और यूट्यूब से जानकारी इकट्ठा कर काम शुरू किया था. शुरू में उन्होंने दस बैग लगाए जो पूरे-के-पूरे खराब हो गए. उन्होंने उसकी वजह जानी और फिर पचास बैग तैयार किए गए. हालांकि उनमें से भी आधे बैग खराब हो गए, लेकिन आधे बैग से मशरूम निकलना शुरू हो गया था.
उसी समय इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में ‘रफ्तार’ नाम से इन्क्यूबेशन सेंटर खुला. सेंटर ने नवाचार के लिए आवेदन मंगाए. उनके पास दो प्रोजेक्ट थे ‘अभिनव’ और ‘उद्भव’. अभिनव प्रोजेक्ट नए आइडिया पर काम करने के लिए था, जिसके तहत चयनित होने पर पांच लाख रुपए का अनुदान मिलता, वहीं उद्भव प्रोजेक्ट जो आइडिया काम कर रहे थे, उन्हें आगे बढ़ाने में मदद के लिए था. इसके तहत 25 लाख रुपए के अनुदान का प्रावधान था.
कुणाल ने इन्क्यूबेशन सेंटर के सीईओ डॉ. हुलास पाठक से मुलाकात की और अपना आइडिया शेयर किया. कुणाल ने उन्हें बताया कि वे एक ही जगह पर पांच चीजें- वर्मी कम्पोस्ट, आइस्टर मशरूम, वर्मी वॉस, केंचुए और सब्जियों का उत्पादन करना चाहते हैं. डॉ. पाठक को आइडिया अच्छा लगा और उन्होंने कुणाल को प्रोजेक्ट के लिए आवेदन करने कहा. कुणाल ने अभिनव प्रोजेक्ट के लिए आवेदन कर दिया.
पहली स्क्रीनिंग में करीब 90 लोगों को बुलाया गया. कुणाल को अपने स्टार्टटप के बारे में विशेषज्ञों को जानकारी देनी थी, लेकिन तब उन्हें ठीक से पता भी नहीं था कि स्टार्टअप क्या होता है. काफी डर-डर कर उन्होंने अपना प्रजेंटेशन दिया. प्रोजेक्ट के लिए 20 लोगों का चयन किया जाना था, जिनमें एक नाम कुणाल का भी था.
16 अगस्त 2018 को वे इस योजना से जुड़ गए. उन्हें दो महीने की ट्रेनिंग दी गई, जिसमें स्टार्टअप इंडिया के विशेषज्ञों से उन्होंने बिजनेस के गुर सीखे. इसके साथ-साथ सेलूद में उनका वर्मी कम्पोस्ट और मशरूम का प्रयोग चल ही रहा था. अगस्त में उन्होंने 200 मशरूम बैग लगाने का निर्णय लिया. इस बार सभी 200 बैग सक्सेस रहे और उनसे मशरूम निकलना शुरू हो गया. इसके बाद कुणाल ने निर्णय लिया कि बस अब यही काम करना है. इसी काम को आगे बढ़ाना है. यही उनका बिजनेस मॉडल है, जिसकी तलाश में लगे हुए थे.
कुणाल ने रामांजलि नाम से एक पार्टनरशिर फर्म बनाई और स्टार्टअप इंडिया में उसका पंजीयन कराया. उनको राज्योत्सव के साथ ही दिल्ली में आयोजित ग्लोबल इंडिया बायोटेक समिट में भी अपना काम दिखाने का मौका मिला. ग्लोबल इंडिया बायोटेक समिट में छत्तीसगढ़ से केवल 5 स्टार्टअप गए थे, जिनमें से एक स्टार्टअप कुणाल का भी था. उनके काम को वहां काफी सराहना मिली.
बनाए मॉडल गौठान
फरवरी 2020 में रायपुर के मंदिर हसौद में राष्ट्रीय कृषि मेले का आयोजन किया गया. मेले में कुणाल ने कलेक्टर से लेकर मुख्यमंत्री तक को अपना प्रोजेक्ट दिखाया. उसी साल जुलाई में राज्य सरकार ने गोधन न्याय योजना शुरू की, जिसके तहत गोबर खरीदी प्रारंभ की गई. कुणाल ने मॉडल गौठान बनाने का प्रोजेक्ट अधिकारियों को दिया. कुणाल को धरसींवा के पथरी गौठान को बनाने का जिम्मा मिला. कुणाल ने एक ही सेटअप के अंदर वर्मी कम्पोस्ट, वर्मी वॉस, मशरूम, केंचुआ और सब्जियों का उत्पादन कर दिखाया, जिसे काफी सराहना मिली. उसके बाद उन्होंने आरंग के बनचरौदा और बागबाहरा के चार गौठनों को मॉडल गौठन के तौर पर डेवलप किया. छेरीखेड़ी मशरूम उत्पादन इकाई को उन्होंने टेकओवर किया और महिला स्वसहायता समूह के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए. इसके तहत महिलाओं को रोजगार देने के साथ ही मशरूम के प्रोडक्शन और उसकी मार्केटिंग को लेकर काम शुरू किया.
मुश्किल वक्त ने दिया नया प्लान
फरवरी 2020 में कुणाल ने अपने शेड का आकार बढ़ाकर चार हजार स्क्वेयर फीट कर दिया. उन्होंने शेड के नीचे चार हजार मशरूम बैग लगाए जहां से प्रतिदिन करीब 100 किलो मशरूम निकल रहा था. सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन तभी मार्च में अचानक लॉकडाउन लग गया. कुणाल इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थे. उनका बिजनेस बिल्कुल नया था और लॉकडाउन में वे रोजाना निकलने वाले 100 किलो मशरूम का क्या करते? उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था, लेकिन इसी मुश्किल वक्त में उनके दिमाग में एक प्लान आया. उन्होंने सर्च करना शुरू किया कि सबसे ज्यादा मशरूम का उत्पादन कहां होता है और उससे क्या-क्या चीजें बनाई जा सकती हैं. कुणाल के मुताबिक, मशरूम केवल 2 दिन ही फ्रेश रहता है. उसके बाद खराब होने लगता है. उन्होंने लॉकडाउन में मशरूम को सुखाना और पीस कर आटा बनाना शुरू किया. इस आटे से उन्हें कुकीज बनाने का आइडिया आया. उन्होंने अपने तीन सहयोगियों के साथ कुकीज बनाने का काम शुरू किया. एक महीने तक प्रयोग चलता रहा. कुकीज को लैब टेस्ट के लिए भेजा. पता चला कि इसमें एनर्जी की काफी अच्छी मात्रा है. प्रति 100 ग्राम में 10 ग्राम प्रोटीन और प्रति 100 ग्राम में 17 ग्राम डाइट्रीफाइबर है. इसके साथ ही बी-12 और विटामिन डी तथा ई की मात्रा भी काफी अच्छी है. उन्होंने अपने सहयोगियों को छेरीखेड़ी स्थित मल्टीयूटीलिटी सेंटर में कुकीज बनाने की ट्रेनिंग दिलवाई और बढ़िया पैकेजिंग के साथ उसे मार्केट में उतारने का निर्णय लिया. इसके पहले उन्होंने काफी लोगों को कुकीज टेस्ट कराई, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया.
तीन राज्यों तक पहुंच रहीं कुकीज
कुणाल बताते हैं, फिलहाल उनकी कुकीज तीन राज्यों झारखंड, तेलांगाना और ओडिशा तक जा रही हैं. हर महीने करीब एक लाख रुपए की कुकीज वे बेच रहे हैं. उनका लक्ष्य पूरे देश में मशरूम की कुकीज पहुंचाना है, जिसको लेकर वे काम कर रहे हैं. अभी उनका फोकस देश के महानगरों पर है. कुकीज के अलावा उनकी टीम मशरूम की बड़ी, पापड़ और अचार भी बना रही है. कुकीज चॉकलेट, कोकोनट, इलाइची और दालचीनी फ्लेवर में उपलब्ध कराई जा रही हैं. इसके अलावा ड्राई मशरूम के 50-50 ग्राम के पैकेट भी तैयार किए हो रहे हैं. कुणाल के मुताबिक, इसे भिगो देने पर यह फ्रेश मशरूम जैसा हो जाता है. उसे सलाद, सब्जी या किसी भी चीज में उपयोग किया जा सकता है. मशरूम सेहत के लिए काफी अच्छा होता है. उसमें प्रोटीन और फाइबर की मात्रा काफी अधिक होती है. इसीलिए यह 150 से 200 किलो तक बिकता है.
उत्पादन बढ़ाने पर जोर
कुणाल का ध्यान फिलहाल मशरूम का उत्पादन बढ़ाने पर है. सेलूद इकाई से प्रतिदिन करीब 150-200 किलो मशरूम उत्पादन हो रहा है. वहीं छेरीखेड़ी मशरूम उत्पादन यूनिट को उन्होंने टेकओवर किया है, जहां से रोजाना 50-60 किलोग्राम मशरूम निकल रहा है. सेलूद में बड़े शेड का निर्माण किया जा रहा है, जहां से प्रतिदिन 500 किलोग्राम मशरूम उत्पादन का लक्ष्य है. कुणाल ने अपने काम में फिलहाल करीब 24 लोगों को रोजगार दे रखा है. स्वसहायता समूह की 50 महिलाएं भी उनके साथ जुड़कर काम कर रही हैं.
भिलाई में आउटलेट की तैयारी
कुणाल मशरूम के उत्पाद बेचने के लिए भिलाई में एक आउटलेट खोलने की भी तैयारी कर रहे हैं. अक्टूबर-नवंबर तक उनका पहला आउटलेट खोलने का लक्ष्य है. आउटलेट में सारे आर्गेनिक सामान एक ही छत के नीचे मिलेंगे. साथ ही आर्गेनिग हब के नाम से एक मोबाइल एप भी लांच करने की तैयारी है.
मशरूम उत्पादन में भरपूर संभावनाएं
कुणाल कहते हैं, छत्तीसगढ़ में मशरूम उत्पादन को लेकर भरपूर संभावनाए हैं. राज्य में इसकी डिमांड भी काफी अच्छी है, लेकिन सप्लाई चेन में दिक्कत है. ज्यादातर लोग रेगुलर सप्लाई नहीं कर पाते. उन्होंने इस दिक्कत को समझा और इसे दूर करने की कोशिश की है. इसीलिए वे बटन या पैरा मशरूम की जगह ऑयस्टर मशरूम का ही उत्पादन कर रहे हैं. बटन मशरूम से लिए 15-18 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है, जिसके लिए काफी संसाधन लगता है, वहीं पैरा मशरूम केवल गर्मी के दिनों में होता है, जबकि ऑयस्टर मशरूम को सालभर किसी भी मौसम में उगाया जा सकता है. कुणाल लोगों को मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग के साथ सेटअप तैयार करके देने का भी काम करते हैं.
अधिक जानकारी के लिए कुणाल से उनके मोबाइल नंबर 78282-27422 पर संपर्क किया जा सकता है.
————————————————–
————————————————————————————————–
यदि आपको हमारी कहानियां पसंद हैं और आप अपना कोई अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहते हैं तो हमें chhattisgarhgatha.com पर लिखें। आप हमें facebook, instagram व twitter पर भी फॉलो कर सकते हैं। किसी भी सकारात्मक व प्रेरणादायी खबर की जानकारी हमारे वाट्सएप नंबर 8827824668 या ईमेल chhattisgarhgatha07@gmail.com पर भी भेज सकते हैं।