छत्तीसगढ़ गाथा डेस्क.
छत्तीसगढ़ी गीतों की जब भी बात होगी, केदार सिंह परिहार का नाम भला कौन भूल सकता है. मुंगेली के केशतरा में रहने वाले श्री परिहार ने कई सुप्रसिद्ध गीत लिखे हैं. 1972 में उनका लिखा एक गीत ‘छत्तीसगढ़ ल छांव करे बर मय छानही बन जातेंव’ आज 50 साल बाद भी लोगों की जुबान पर है. श्री परिहार अच्छे गीतकार होने के साथ ही अच्छे गायक और संगीतकार भी हैं.
श्री परिहार का जन्म केशतरा से दो किलोमीटर दूर पलानसरी गांव में 7 मार्च 1952 को एक किसान परिवार में हुआ. उनके पिता का नाम भागवत सिंह परिहार तथा माता का नाम श्रीमती अंबिका सिंह परिहार है. उनकी प्रारंभिक शिक्षा नवागढ़ के पास स्थित गाड़ामोर गांव में हुई. इसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए मुंगेली आ गए. मुंगेली के एनएसजी कॉलेज से उन्होंने बीए किया. फिर जांजगीर कॉलेज में एलएलबी की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया, लेकिन किन्हीं पारिवारिक कारणों की वजह से उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी.
श्री परिहार के अंदर लेखन का बीज बचपन से ही पड़ गया था. स्कूल के दिनों में वे दो-दो, चार-चार लाइन की कविताएं लिखा करते थे. कॉलेज के दिनों में सहज रूप से उनके अंदर कविताएं फूटने लगी थीं और वे उन्हें कागज पर उतारने लगे थे. 1972 में छत्तीसगढ़ का खयाल करते हुए उन्होंने एक गीत लिखा- ‘मर के देव लोक झन जातेंव, कहूं जनम झन पातेंव, ‘छत्तीसगढ़ ल छांव करे बर मय छानही बन जातेंव.’ इस गीत के बाद उनकी साहित्यिक यात्रा शुरू हुई.
उसी समय मुंगेली से लगे ग्राम पुरान में ‘छत्तीसगढ़ी साहित्य सम्मेलन’ का आयोजन किया गया, जिसमें छत्तीसगढ़ के सभी सुप्रसिद्ध कवियों-गीतकारों को आमंत्रित किया गया. इस आयोजन में पहली बार श्री परिहार को भी बतौर गीतकार बुलाया गया. उन्होंने पवन दीवान, दानेश्वर शर्मा, लक्ष्मण मस्तूरिया जैसे बड़े कवियों के बीच अपनी रचनाएं पढ़ीं. इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा. सबने उनकी खूब प्रशंसा भी की. इसके बाद उन्हें प्रदेशभर के साहित्यिक मंचों पर बुलाया जाने लगा और देखते ही देखते श्री परिहार लोगों के चहेते गीतकार बन गए. 71 वर्षीय श्री परिहार कई पुरस्कार और सम्मानों से नवाजे जा चुके हैं.
400 से अधिक रचनाएं
श्री परिहार ने 400 से अधिक रचनाएं लिखी हैं. इसमें कविता और गीत दोनों शामिल हैं. गीतों की संख्या अधिक है. श्री परिहार कहते हैं- ‘गीत उनके दिल के ज्यादा करीब हैं. जेहन में ज्यादातर गीत ही आते हैं.’ उनके गीतों में छत्तीसगढ़ के प्रति लगाव को सहज ही महसूस किया जा सकता है. यही कारण है कि उनके लिखे गीत जनगीतों की तरह लोगों की जुबान पर बस गए हैं. उन्होंने ज्यादातर रचनाएं छत्तीसगढ़ी में लिखी हैं. रामायण और रामचरित मानस से प्रभावित होने के कारण उन्होंने बड़ी संख्या में धार्मिक रचनाएं भी लिखी हैं.
फिल्मों में लिखे गीत
श्री परिहार ने दो फिल्मों में भी गीत लिखे हैं. ‘किसान-मितान’ और ‘इही हे राम कहानी’ नामक फिल्मों के सारे गीत श्री परिहार के ही लिखे हैं. ये दोनों फिल्में राज्य गठन के बाद बनी थीं और फिल्मों को अच्छा प्रतिसाद मिला था. किसान-मितान फिल्म को बनाने वाले श्रीकांत सोनी मुंगेली के ही हैं. उन्होंने श्री परिहार से फिल्म के लिए गीत लिखने का आग्रह किया, जिसके बाद उन्होंने फिल्म के सारे गीत लिखे थे. उन्होंने गीतों का कोई पैसा नहीं लिया था. श्री परिहार कभी भी मंचों पर कविता-गीत पढ़ने का भी पैसा नहीं लेते थे. उन्होंने चुनावों के लिए भी कई गीत लिखे, लेकिन कभी किसी से लिखे का पैसा नहीं लिया.
संग्रह एक भी प्रकाशित नहीं
श्री परिहार की कविता या गीतों का एक भी संग्रह प्रकाशित नहीं हुआ है. वे कहते हैं- ‘उन्हें कभी नहीं लगा कि कोई संग्रह प्रकाशित करवाना चाहिए, इसलिए कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया.’ श्री परिहार की कई रचनाएं खो भी गई हैं. उन्होंने कभी डायरी में रचनाओं को नोट नहीं किया. जहां-तहां लिखते रहे और बाद में कई रचनाएं मिली ही नहीं. हालांकि श्री परिहार को इसका कोई मलाल नहीं है. अब संग्रह प्रकाशित करवाने की बात पर वे कहते हैं- ‘उन्हें अब भी नहीं लगता कि संग्रह प्रकाशित होना चाहिए, लेकिन अगर कोई व्यक्ति संग्रह प्रकाशित करवाना चाहता है, तो उन्हें इस पर कोई आपत्ति भी नहीं है.’
राजनीति में भी रहे सक्रिय
श्री परिहार राजनीति में भी सक्रिय रहे. गांव के पंच, सरपंच से लेकर उन्होंने जिला पंचायत सदस्य तक का चुनाव लड़ा है. 1981 में वे ग्राम पंचायत टिंगीपुर के सरपंच बने. वे दो पंचवर्षीय सरपंच रहे. इसी दौरान कृषि उपज मंडी, मुंगेली के अध्यक्ष बने. साथ ही मध्यप्रदेश मंडी बोर्ड के सदस्य भी नियुक्त किए गए. उन्होंने 1986 में बिलासपुर जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा, लेकिन विवादों की वजह से वह चुनाव नहीं हो पाया. मतदान के एक दिन पहले कोर्ट ने चुनाव पर रोक लगा दी थी और बाद में चुनाव नहीं हो सका था. उस चुनाव में श्री परिहार के जीतने की प्रबल संभावना थी. उनके सामने कांग्रेस के धर्मजीत सिंह थे, जो वर्तमान में लोरमी के विधायक हैं. अगर वह चुनाव हुआ होता और श्री परिहार जीत जाते, तो उसके आज अलग मायने होते. 2008 से 2014 तक वे दो बार छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के सदस्य रहे.
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