डॉ. खूबचंद बघेल: जिनके सपनों में आया था छत्तीसगढ़ राज्य

छत्तीसगढ़ गाथा डेस्क/

त्तीसगढ़ राज्य का स्वप्न देखने वाले डॉ. खूबचंद बघेल की आज जयंती है. 8 जनवरी 1956 को छत्तीसगढ़ महासभा का गठन किया गया, जिसका अध्यक्ष डॉ. खूबचंद बघेल को बनाया गया. दशरथ लाल चौबे को सचिव व केयूरभूषण तथा हरि ठाकुर को सर्वसम्मति से संयुक्त सचिव मनोनीत किया गया. डॉ. बघेल ने अपने अध्यक्षीय भाषण में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग रखी और इसके औचित्य पर प्रकाश डाला. इसके पश्चात छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया. इसी दिन से पृथक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की नींव पड़ गई थी.

डॉ. खूबचंद बघेल का जन्म रायपुर जिले के पथरी नामक गांव में 19 जुलाई 1900 को एक प्रतिष्ठित किसान परिवार में हुआ. उनके पिता का नाम जुड़ावन प्रसाद तथा माता का नाम केतकी बाई था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा ग्राम पथरी तथा माध्यमिक शिक्षा शासकीय बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय रायपुर से संपन्न हुई. हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे उच्चशिक्षा के राबर्टसन कॉलेज नागपुर चले गए.

आंदोलन में हिस्सा लेने छोड़ दी डॉक्टरी की पढ़ाई

डॉ. खूबचंद बघेल विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय विचारधारा से प्रभावित होकर राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लेने लगे थे. बाल गंगाधर तिलक का 1917 में रायपुर आगमन हुआ. रायपुर रेलवे स्टेशन पर उनका भव्य स्वागत किया गया. इसे देखकर डॉ. बघेल के युवा ह्रदय पर तिलक जी के व्यक्तित्व का गहरा प्रभाव पड़ा. 1920 में कांग्रेस के 45वें अधिवेशन के दौरान नागपुर में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव रखा. उस समय डॉ. बघेल नागपुर में डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे. असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई छोड़ दी और खादी के प्रचार-प्रसार में लग गए. इस दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा. सालभर बाद घर वालों के आग्रह पर उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई पूरी की.

सरकारी नौकरी छोड़ कांग्रेस में हुए शामिल

खूबचंद बघेल ने 1923 में एलएमपी की परीक्षा उत्तीर्ण की और 1931 तक बतौर चिकित्सा अधिकारी शासकीय नौकरी की. 1931 में नमक सत्याग्रह के दौरान नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए. इसी साल पं. सुंदरलाल शर्मा और ठा. प्यारेलाल सिंह के साथ उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन का नेतृत्व किया. आंदोलन में उनकी माता और पत्नी ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. आंदोलन के दौरान डॉ. खूबचंद बघेल और उनकी पत्नी राजकुंवर देवी को गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों को छह महीने की जेल हुई.

भारत छोड़ो आंदोलन में ढाई साल की जेल

1933 में महात्मा गांधी के अस्पृश्यता कार्यक्रम में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. उन्हें मध्यप्रदेश हरिजन सेवक संघ का मंंत्री नियुक्त किया गया. 1936 में डॉ. खूूबचंद बघेल द्वारा लिखित नाटक ‘ऊंचा-नीच’ का रायपुर के पास चंदखुरी गांव में पहली बार मंचन किया गया. इसे देखने पं. रविशंकर शुक्ल और महंत लक्ष्मीनारायण दास विशेष रूप से उपस्थित हुए. इस नाटक का लोगों पर चमत्कारी प्रभाव पड़ा. गांधीजी के नेतृत्व में 1942 के ऐतिहासिक भारत छोड़ो आंदोलन में डॉ. खूबचंद बघेल पुन: जेल गए और ढाई वर्ष जेल में बिताए.

मुख्यमंत्री से हुआ मनमुटाव तो दिया इस्तीफा

कांग्रेस ने 1946 में डॉ. खूबचंद बघेल को तहसील अध्यक्ष और प्रांतीय कार्यकारिणी का सदस्य मनोनीत किया. इसी वर्ष वे धरसींवा विधानसभा क्षेत्र से विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए. वे तत्कालीन मंत्रिमंडल में संसदीय सचिव भी रहे. उन्होंने स्वास्थ्य विभाग का भी कामकाज सम्हाला. इसी दौरान जनता के हितों को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल ने उनका मनमुटाव हो गया, जिसके कारण उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया. 1950 में वे आचार्य कृपलानी के अह्वान पर कृषक मजदूर दल में शामिल हो गए. 1951-52 वे पुन: धरसींवा क्षेत्र से विधायक बने. इस बार उन्होंने कृषक मजदूर दल की ओर से चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी. वे 1962 तक विधानसभा के सदस्य रहे. 1967 में वे राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित किए गए.

किसानों-आदिवासियों के हक की लड़ी लड़ाई

डॉ. खूबचंद बघेल पेशे से चिकित्सक थे. परंतु कृषि और कृषकों की उन्नति के लिए हमेशा प्रयासरत रहे. उन्होंने छत्तीसगढ़ के अनेक आदिवासी व किसान आंदोलनों का नेतृत्व किया. उन्होंने कृषि को उद्योग के समकक्ष विकसित करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किए. डॉ. बघेल का उद्देश्य महज राजनीति करना नहीं था, बल्कि राजनीति के माध्यम से छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान को जगाना था. वे हमेशा समाज को शोषण, अन्याय व दमन से बचाने जुटे रहे.

शांतिपूर्ण आंदोलनों का किया संचालन

डॉ. बघेल गांधीवादी विचारधारा के थे. 1966 में जब वे अखिल भारतीय कुर्मी महासभा के अध्यक्ष बने, तब उन्होंने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि ‘मुझे अपने जीवन में महात्मा गांधी के विचारों से स्फूर्ति और प्रेरणा मिली है. मैं उन्हें युग का मसीहा मानता हूं.’ गांधीवादी होने के कारण वे हमेशा शांतिपूर्ण आंदोलनों का संचालन करते थे. उन्हीं के बताए मार्ग पर चलकर सन 2000 में छत्तीसगढ़ एक नया राज्य बना. इसके लिए कभी कोई हिंसक आंदोलन नहीं करना पड़ा. उन्होंने सरकारी एवं गैर-सरकारी नौकरियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दिलाने भी कई आंदोलन किए. साहित्य सृजन, लोकमंचीय प्रस्तुति तथा परस्पर बोलचाल में वे छत्तीसगढ़ी भाषा के पक्षधर थे. ठा. प्यारेलाल सिंह द्वारा संपादित अखबार ‘राष्ट्रबंधु’ में डॉ. खूबचंद बघेल के लेख प्रमुखता से प्रकाशित होते थे. उन्होंने आचार्य कृपलानी के कई लेखों का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया.

नाटकों के माध्यम से लाई समाज में जागृति

डॉ. बघेल की लेखनी बहुत सशक्त थी. उन्होंने छत्तीसगढ़ी में तीन नाटक लिखे. इनमें पहला ‘ऊंचा-नीच’ था, जिसने समाज में फैली अस्पृश्यता और जातिवाद पर करारा प्रहार किया. दूसरा- ‘करम छंड़हा’ था, जिसमें छत्तीसगढ़ के आम आदमी की गाथा और उसकी बेबसी का वर्णन है. तीसरे नाटक- ‘जनरैल सिंह’ में उन्होंने छत्तीसगढ़िया लोगों के दब्बूपन की प्रवृत्ति को दूर करने का रास्ता सुझाया. 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान ‘भारतमाता’ नामक नाटक लिखकर मंचित करवाया. मंचन के माध्यम से पथरी, कुरुद आदि गांवों से बड़ी मात्रा में सामग्री एकत्रित कर प्रधानमंत्री राहत कोष में भेजी गईं.

22 फरवरी 1969 को डॉ. खूबचंद बघेल का ह्रदयगति रुकने से दिल्ली में निधन हो गया. उनकी अंत्येष्टि रायपुर के महादेव घाट पर की गई. छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में कृषि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धि एवं अनुसंधान को प्रोत्साहित करने दो लाख रुपए का राज्य स्तरीय डॉ. खूबचंद बघेल सम्मान स्थापित किया है.

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