पेंशन के 300 रुपयों से चलता था घर, जूते और जैकेट लेने के भी पैसे नहीं थे, मां और भाई की ताकत ने नैना को पहुंचाया एवरेस्ट तक

प्रफुल्ल ठाकुर/

युवा पर्वतारोही नैना सिंह धाकड़ ने छत्तीसगढ़ के बस्तर को एक नई पहचान दी है. 1 जून 2021 को वे दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी एवरेस्ट पर जा पहुंचीं. ऐसा करने वाली वे राज्य की दूसरी पर्वतारोही हैं. इससे पहले 1993 में भिलाई की सविता धपवाल ने बछेंद्री पाल के साथ एवरेस्ट फतह किया था.

जगदलपुर जिला मुख्यालय से 17 किलोमीटर दूर टाकरागुड़ा गांव की 30 साल की नैना पिछले दस सालों से पहाड़ चढ़ रही हैं. उन्होंने जब से पर्वतारोहण को अपने जीवन का हिस्सा बनाया, तब से उनका एक ही सपना था- माऊंट एवरेस्ट फतह करना. उन्होंने अपने जोश, जज्बे और जुनून के बलबूते आखिरकार एवरेस्ट को जीत ही लिया.

नैना की स्कूली शिक्षा जगदलपुर के महारानी लक्ष्मीबाई हायर सेकंडरी स्कूल से हुई. इसके बाद उन्होंने बस्तर विश्वविद्यालय से बीए किया. उन्होंने डीसीए, पीजीडीसीए, एमएसडब्ल्यू, बीपीएड का कोर्स भी किया हुआ है. इसके बाद उन्होंने पर्वतारोहण में बेसिक माउंटेनियरिंग, एडवांस माउंटेनियरिंग, एमओआई कोर्स, रॉक बेसिक एंड एडवांस, एसएनआर सर्च एंड रेस्क्यू का भी कोर्स किया.

तभी तय कर लिया कि पर्वतारोही बनना है..

नैना स्कूल में पढ़ाई के दौरान एनएसएस से जुड़ गई थीं. वे बताती हैं, एक बार वे एनएसएस कैंप में हिस्सा लेने पंडरीपानी गई थीं. इसी दौरान उन्हें डोंगरी की चढ़ाई करने कहा गया. वे आसानी से डोंगरी चढ़ गईं. लोग उनको देखकर आश्चर्यचकित थे कि कैसा गजब का बैलेंस है. कैसी अद्भुत रफ्तार है. उन्होंने खूब तालियां बजाईं और नाम दे दिया माउंटेनियर नैना सिंह. बस, यह बात मन में बैठ गई. 2010 में एनएसएस कैंप में शामिल होकर हिमाचल जाने का मौका मिला. बस्तर विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित इस कैंप में सलेक्ट होकर नैना ने 11 हजार फीट की ऊंचाई नाप ली.

बछेंद्री पाल की टीम का बनीं हिस्सा

हिमाचल दौरा नैना के लिए बेहद खास रहा. इन दौरे ने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी. नैना की उपलब्धियों की वजह से उनका चयन टाटा एकेडमी के लिए हो गया, जहां उनकी मुलाकात माऊंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम भारतीय महिला बछेंद्री पाल से हुई. नैना बछेंद्री की टीम का अहम हिस्सा बन गईं. इस टीम में शामिल 12 युवतियों के दल को भूटान जाने का मौका मिला. जहां इन सभी 12 युवातियों ने वहां की 11 पर्वत श्रृंखलाओं को पार कर उस ऊंचाई को छुआ, जहां से सभी का नाम लिम्का बुक आॅफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज हो गया. उस वक्त नैना की उम्र महज 17 साल की थी और वे छत्तीसगढ़ की पहली इंटरनेशनल माउंटेनियर बन चुकी थीं.

दर्जनभर चोटियां कर चुकीं फतह

नैना अब तक दर्जनभर से अधिक चोटियों को फतह कर चुकी हैं. 2010 में हिमालय रेंज पर 12 हजार फीट की ऊंचाई तक चढ़ाई पूरी की. 2011 में स्नोमैन ट्रैक भूटान में 5800 मीटर, 2012 में सिक्किम हिमालय की रिनॉक पीक, 2013 में नेपाल हिमालय, 2015 में उत्तराखंड हिमालय ग्लेशियर्स पर 5800 मीटर तक की चढ़ाई पूरी की. 2015 में ही माऊंट आबू, 2017 में माऊंट भागीरथी-2 और उसके बाद 2018 में मनाली से खारदुंगला, लेह, लद्दाख होते हुए विश्व की सबसे ऊंची मोटरेबल पॉस रोड तक साइकिल से सवारी करने के बाद लेह-लद्दाख की सबसे ऊंची चोटी माऊंट स्टोक कांगड़ी तक 6153 मीटर की चढ़ाई पूरी की. 2018 में ही लेह-लद्दाख की माऊंट गोलेप कांगड़ी तक 5950 मीटर की चढ़ाई कर चोटी पर फतह हासिल की. उसी साल हिमालय के रास्ते माऊंट आंदुरी में 5950 मीटर ऊंचाई तक पहुंचीं. 2019 में एशिया के दूसरे सबसे ऊंचे ग्लेशियर माऊंट कैथिड्रल (6100 मीटर) और माऊंट जल्दी (5900 मीटर) तक की चढ़ाई की. 2019 में ही हिमालय के चंद्रताल ट्रैक पर 4300 मीटर की पहाड़ियों को भी नैना लांघ चुकी हैं.

उधार लेकर जुटाया सामान

उपलब्धियों के शोर में कहीं-न-कहीं संघर्ष की कहानी दब जाती है. नैना के एवरेस्ट फतह करने के बाद चारों तरफ उनकी वाहवाही हो रही है. उनकी उपलब्धि पर पूरा छत्तीसगढ़ गौरवांवित हो रहा है, लेकिन यही नैना एक समय में एक अदद किट बैग के लिए मोहताज थीं. माउंटेनिंग के लिए स्नो बूट, ट्रैकिंग बूट, ट्रैकिंग सूट, जंप सूट, फैदर जैकेट, विंटर जैकेट, विंड प्रूफ जैकेट, क्रैंपोंस, हार्निस सेट, कैराविनर, जुमार, आइस एक्स, हेलमेट, हैंड चार्ट, टेंट, स्लीपिंग बैग, मेट्रेस, साइस हैमर, ग्लोब, साइस पिटॉल, रॉक पिटॉन और रेकसेक की जरूरत पड़ती है. नैना के पास केवल रेकसेक था, बाकी की सामग्री उन्हें दूसरों से उधार लेनी पड़ती थी. लेकिन इसके बाद भी नैना ने कभी हार नहीं मानी. अपनी जिद और जुनून के बलबूते वे लगातार कोशिशें करती रहीं. आर्थिक दिक्कतों की वजह से वे पिछली बार एवरेस्ट फतह से चूक गई थीं, लेकिन इस बार जिला प्रशासन और एनएमडीसी उनकी मदद को सामने आया. कलेक्टर रजत बंसल ने उनके अभियान को मदद की और इस मदद के बलबूते नैना ने एवरेस्ट को अपने कदमों से नाप कर दिखा दिया.

300 रुपए पेंशन में मां ने तीन बच्चों को पाला

नैना के सिर से पिता का साया तीन साल की उम्र में ही उठ गया. पिता पुलिस विभाग में आरक्षक थे. बीमारी की वजह से उनकी असमय मृत्यु हो गई. पिता के गुजर जाने के बाद तीन बच्चों की जिम्मेदारी मां विमला ठाकुर पर आ गई. तीन भाई-बहनों में नैना दूसरे नंबर की हैं. मां के पढ़े-लिखे न होने के कारण उन्हें अनुकंपा नियुक्ति नहीं मिली, लेकिन पिता की 300 रुपए की पेंशन उन्हें मिलती रही. 300 रुपए की पेंशन में मां विमला ठाकुर ने तीनों बच्चों को पाल-पोसकर बड़ा किया. नैना के बड़े भाई रवि पर बचपन से जिम्मेदारियों का बोझ आ गया. उन्होंने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा, जबकि छोटा भाई अजय सातवीं कक्षा तक पढ़ा है. बड़े भाई ड्राइविंग का काम करते हैं, वहीं छोटा चाय की दुकान चलाता है. हालांकि, मां ने नैना की पढ़ाई में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. विषम परिस्थितियों और संघर्षों के बाद भी मां ने नैना को स्कूल-कॉलेज तक पढ़ाई पूरी कराई. इसके बाद का सफर नैना ने अपने बलबूते खुद तय किया. नैना के लिए उनके प्रेरणास्रोत उनकी मां और दोनों भाई हैं, जो बुरे से बुरे हालात में भी उनकी हौसला-अफजाई करते रहे. मां ही उनकी रोलमॉडल हैं.

छत्तीसगढ़ गाथा से बात करते हुए मां विमला ने अपनी खुशी जाहिर की. उन्होंने कहा कि ‘उन्हें अपनी बेटी पर गर्व है. बेटी की सफलता से वे बेहद उत्साहित हैं. एवरेस्ट जीतना उसका सपना था और उसने अपने सपने को पूरा कर लिया.’
————————————-

————————————————————————————————–

यदि आपको हमारी कहानियां पसंद हैं और आप अपना कोई अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहते हैं तो हमें chhattisgarhgatha.com पर लिखें। आप हमें facebook, instagramtwitter पर भी फॉलो कर सकते हैं। किसी भी सकारात्मक व प्रेरणादायी खबर की जानकारी हमारे वाट्सएप नंबर 8827824668 या ईमेल chhattisgarhgatha07@gmail.com पर भी भेज सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *