12 साल में 22 हजार से अधिक सांपों का रेस्क्यू, पढ़िए सापों की जिंदगी बचाने वाली एक संस्था की कहानी

छत्तीसगढ़ गाथा डेस्क.

इंसानों की जिंदगी बचाने वाले बहुत से लोगों के किस्से आपने सुने होंगे, लेकिन आज हम आपको सांपों की जिंदगी बचाने वाली एक संस्था की कहानी बताने जा रहे हैं. इस संस्था का नाम है- नोवा नेचर वेलफेयर सोसाइटी.

संस्था छत्तीसगढ़ के 6 जिलों रायपुर, दुर्ग, मुंगेली, कवर्धा, गरियाबंद और बीजापुर में वन्य प्राणियों के संरक्षण और उनके प्रति जागरूकता का काम करती है. संस्था ने पिछले 12 सालों में 22 हजार से अधिक सांपों का रेस्क्यू कर उनकी जान बचाई है.

संस्था के सचिव मोइज अहमद बताते हैं, ‘संस्था हर साल 1500-1800 सांपों का रेस्क्यू करती है. छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में सांप बहुतायत में मिलते हैं, लेकिन सर्वाधिक सांप दुर्ग जिले में रेस्क्यू किए जाते हैं. अकेले दुर्ग में सालभर में 2 हजार से अधिक सांपों का रेस्क्यू होता है. जिले का क्षेत्रफल बड़ा होने के कारण मामले अधिक आते हैं.

मोइज बताते हैं- ‘वे और उनके साथी राज्य बनने के पहले से ही वन्य प्राणियों के संरक्षण और जागरूकता के लिए दूसरी संस्थाओं के साथ मिलकर काम कर रहे थे. राज्य बनने के बाद 2004 में उन्होंने ‘‘नोवा नेचर वेलफेयर सोसाइटी’’ के नाम से अपनी संस्था पंजीकृत कराई और स्वतंत्र रूप से काम करने लगे.

सांप रेस्क्यू का काम 2006-07 से शुरू किया. लेकिन तब संस्था के पास बहुत अधिक कॉल नहीं आते थे. किसी नेता, अफसर या मंत्री के बंगले में सांप निकलने पर वन विभाग के अधिकारी फोन किया करते थे. धीरे-धीरे मीडिया के जरिए अन्य लोगों को जानकारी होती गई और लोग घरों, दुकानों आदि में सांप निकलने पर फोन करने लगे.

धीरे-धीरे लोगों के कॉल की संख्या बढ़ने लगी. 2010 में उन्होंने वन विभाग से विधिवत सांप रेस्क्यू करने का सर्टिफिकेट प्राप्त किया और फिर जोर-शोर से काम शुरू किया. सर्टिफिकेट मिलने के बाद 12 वर्षों में संस्था ने 22 हजार से अधिक सांपों का रेस्क्यू छत्तीसगढ़ में किया है. जिन जिलों में संस्था के सदस्य नहीं है, उन जिलों में स्थानीय स्तर पर काम करने वाली संस्थाओं की मदद से सांपों का रेस्क्यू किया जाता है.

मोइज बताते हैं- वन्य प्राणियों के संरक्षण और जागरूकता को लेकर वे 1999 से सीतानदी उदंती क्षेत्र में काम कर रहे थे. वहां अक्सर सांपों से मुठभेंड़ हो जाती थी. शुरू-शुरू में उन्हें सांपों से बहुत डर लगता था, लेकिन धीरे वे उनके साथ सहज होते गए.

मोइज कहते हैं, ‘सांप इंसानों से बहुत डरते हैं. वे इंसानों के पास नहीं आना चाहते. लेकिन जब इंसान ही उनके घर में घुस आए तो वे क्या करेंगे? सीता नदी उदंती क्षेत्र में काम करने के दौरान हम उनके घरों में घुसे थे. इसलिए उनसे बचकर या उनके साथ समझौता करके ही काम किया जा सकता था. ऐसी जगह पर काम करने के दौरान आपकी सांपों से दोस्ती हो ही जाती है.’

सांप रेस्क्यू करते नोवा नेचर वेलफेयर सोसाइटी के सदस्य

ऐसे हुई सांपों के रेस्क्यू की शुरुआत

मोइज ने सांप रेस्क्यू का काम 2006-07 से शुरू कर दिया था. उनके बड़े भाई मोहिब खान नगर निगम रायपुर के अंतर्गत फायर ब्रिगेड में वायरलेस आॅपरेटर थे. उनके पास अक्सर घरों में सांप निकलने की सूचनाएं आती थीं. एक दिन उन्होंने मोइज को बुलाकर कहा कि तुम लोग तो संस्था बनाकर वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए काम कर ही रहे हो, क्यों न शहर में लोगों के घरों में निकलने वालों का भी रेस्क्यू किया करो. भाई की बात मोइज और उनके साथियों को जम गई. इसके बाद रायपुर से सांपों के रेस्क्यू का सिलसिला शुरू हुआ जो अब छत्तीसगढ़ के 6-7 जिलों तक फैल गया है.

संस्था के अध्यक्ष एम. सूरज हैं. वे भिलाई में रहते हैं. उनसे पहले एएल खान संस्था के अध्यक्ष थे. वे संस्था के फाउंडर मेंबर भी थे. बीमारी के कारण 2015 में उनका निधन हो गया, जिसके बाद एम. सूरज को संस्था का अध्यक्ष बनाया गया.

सूरज 2015 में ही संस्था के साथ जुड़े थे. इससे पहले वे रायपुर के एक निजी कॉलेज में प्रोफेसर थे. उन्हें भी सांपों के रेस्क्यू का शौक था. वे 2-3 सालों से काम कर रहे थे. एक दिन वे मोइज के संपर्क में आए और उन्होंने संस्था के साथ काम करने की इच्छा जताई. इसके बाद वे संस्था के साथ जुड़ गए. सुबह 10 से शाम 5 बजे तक कॉलेज में विद्यार्थियों को पढ़ाते और सुबह व रात सांप रेस्क्यू करने जाते. बाद में वे संस्था के साथ पूर्ण रूप से जुड़ गए और उन्हें संस्था का अध्यक्ष बना दिया गया.

संस्था राज्य के विभिन्न जिलों में सांपों के रेस्क्यू के साथ अन्य वन्य जीवों के संरक्षण, रिसर्च और लोगों में वन्य जीवों को लेकर जागरूकता फैलाने का काम करती है.

सांप रेस्क्यू करते नोवा नेचर वेलफेयर सोसाइटी के सदस्य

रात दो बजे भी आते हैं कॉल

मोइज बताते हैं, सांप रेस्क्यू का काम मतलब 24 घंटे की ड्यूटी है. किसी भी वक्त फोन आ सकता है और आपको जाना पड़ता है. वे बताते हैं कि रात को 12 बजे, 2 बजे और सुबह 4 बजे भी फोन आते हैं. बरसात के दिनों में कॉल की संख्या एकदम से बढ़ जाती है. रोजाना 30-40 कॉल तक आते हैं. जिनमें से 10-15 रेस्क्यू किए जाते हैं.

बरसात की तुलना में गर्मी और ठंड में कम कॉल आते हैं. इन दोनों मौसम में 5-10 कॉल ही आते हैं, जिनमें से 1-2 रेस्क्यू होते हैं. कई बार सांप दिखता है, फिर चला जाता है. ऐस में लोग डर के मारे एहतियात बरतने की जानकारी लेने भी फोन करते हैं. रायपुर में 40 किलोमीटर के दायरे में संस्था के सदस्य सांपों का रेस्क्यू करने जाते हैं.

लोगों के फोन आने बाद कंफर्म किया जाता है कि सांप घर के अंदर कहां है? किचन में है, बेडरूम में है या बाथरूम में? इसके बाद उस क्षेत्र के आसपास रहने वाले सबसे नजदीकी सदस्य को सांप रेस्क्यू की जिम्मेदारी दी जाती है. कई बार घर के बाहर गली, नाली में भी सांप दिख जाने पर लोग संस्था के सदस्यों को फोन कर बुला लेते हैं.

सांप का रेस्क्यू

सांपों के बारे में जानकारी का आभाव

सांपों के बारे में लोगों को जानकारी का अभाव है. लोग समझते हैं सांप मतलब जहरीला ही होगा, जबकि ऐसा नहीं है. सांप एक ऐसा जीव है, जिससे दुनियाभर में ज्यादातर लोग डरते और नफरत करते हैं. दिख जाने पर उन्हें मार देते हैं. बारिश के मौसम में तो सांप अक्सर हमारे घरों में घुस आते हैं और हम सीधे उन्हें मारने पहुंच जाते हैं.

आम लोगों की समझ के अनुसार, सभी सांप जहरीले होते हैं और उन्हें मार देने में ही भलाई है, लेकिन यह बात पूरी तरह सही नहीं है. केवल कुछ सांप ही जहरीले होते हैं, सभी नहीं. सांपों के बारे में बहुत सी गलत जानकारियां समाज में फैली हुई हैं, जिनके कारण सांप इंसानी क्रूरता का शिकार होते हैं.

मोइज कहते हैं- सांप जहरीले हों तब भी उन्हें नहीं मारा जाना चाहिए. सांपों को बचाना इसलिए जरूरी है, क्योंकि वे हमारे फूड चैन का हिस्सा हैं और पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं.

सांपों को किसानों का सच्चा मित्र कहा जाता है. वे चूहों से फसलों की सुरक्षा करते हैं. भारत की 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है. अगर सांपों को मार दिया जाएगा तो फिर चूहों को कौन खाएगा? ऐसे में चूहों की संख्या बढ़ जाएगी. चूहों की संख्या न बढ़े, इसलिए प्रकृति ने सांपों को बनाया है. सांप चूहों के बिल में घुसकर उनका शिकार करते हैं. जिसके कारण किसानों की फसलें सुरक्षित रहती हैं. सांप हमारी पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. हमारे पर्यावरण के रक्षक हैं.

सांप का रेस्क्यू

 

ज्यादातर सांप जहरीले नहीं

मोइज बताते हैं, ज्यादातर सांप जहरीले नहीं होते. छत्तीसगढ़ में सापों की कुल 46 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से केवल 13 ही जहरीली हैं, जिनके काटने से इंसानों की मौत हो सकती है. हालांकि इनमें से केवल 3 प्रजातियां- भारतीय नाग, सामान्य करैत और घोड़स (रसल वाइपर) ही गांव-शहरों के नजदीक पाए जाते हैं, बाकी प्रजातियां जंगलों में पाई जाती है. अहिराज भी जहरीला होता है, लेकिन उसके काटने का कोई मामला राज्य में नहीं मिला है. सबसे ज्यादा मौतें करैत के काटने से होती हैं.

नाग और करैत में न्यूरोटॉक्सिक जहर होता है जो रक्त तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है. इसके काटने से खून का प्रवाह रुक जाता है और व्यक्ति की मौत हो जाती है, वहीं रसल वाइपर में हिमोटॉक्सिक जहर होता है. जिससे प्रभाव से काटे जाने वाली जगह में सूजन आता है और वह जगह गलने लगती है. उस स्थान से खून और पानी निकलना शुरू हो जाता है. थोड़ी ही देर में मुंह, नाक, आंख, कान से भी खून रिसने लगता है. ऐसे व्यक्ति को अगर तत्काल एंटी वेनम नहीं दिया जाता तो उसकी मौत हो जाती है.

मोइज के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में पाई जाने वाली सांपों की कुल प्रजातियों में से 24 प्रजातियां ऐसी हैं, जिनमें बिल्कुल जहर नहीं होता. इनके काटने से किसी भी व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती. वहीं 9 प्रजातियां ऐसी हैं, जिनमें कम मात्रा में जहर होता है. इन प्रजाति के सांपों के काटने से शरीर में तेज दर्द और उल्टी-बुखार आता है, लेकिन मौत नहीं होती. मोइज के मुताबिक, कुल 15 प्रकार के सांप ही गांवों, शहरों तथा उसके आसपास के क्षेत्र में पाए जाते हैं. बाकी सांप जंगली क्षेत्रों में मिलते हैं.

बारिश के दिनों में सांपों की संख्या अधिक इसलिए दिखाई देती है क्योंकि बिलों में पानी घुस जाता है. जिसके कारण उन्हें बाहर निकलना पड़ता है. सूखी जगह और भोजन की तलाश में घरों में घुसते हैं. चूहे और मेंढ़क उनका प्रिय भोजन हैं. उनकी खोज में वे घरों तक पहुंचते हैं और इंसानों द्वारा मार दिए जाते हैं. हालांकि अब लोगों में काफी हद तक जागरूकता आई है और वे रेस्क्यू टीम के सदस्यों को कॉल कर बुला लेते हैं.

मोइज बताते हैं कि सांप निकलने के 80 प्रतिशत मामलों में लोग रेस्क्यू टीम के सदस्यों को बुलाते हैं. 20 प्रतिशत मामलों में अभी सांप भी इंसानों द्वारा मारे जा रहे हैं. बरसात के दिनों में सांप बच्चे भी देते हैं. इसलिए इनकी संख्या एकदम से बढ़ जाती है.

फाइल फोटो: सांप को दूध पिलाने की कोशिश

सांप नहीं पीते दूध

सांप दूध नहीं पीते, यह वैज्ञानिक सत्य है. बावजूद इसके लोग अंधविश्वास में पड़कर सांपों को दूध पिलाते हैं. सावन के महीने या नाग पंचमी पर अक्सर सपेरे सांपों को दूध पिलाते हुए दिख जाते हैं और लोग श्रद्धा से उन पर पैसे भी चढ़ाते हैं.

दूध, सांप का आहार नहीं है. दूध सांप के फेफड़ों में जम जाता है. जिससे उनकी मौत हो जाती है. सपेरे सांपों को दूध पिलाने से पहले उन्हें कई दिनों तक भूखा रखते हैं. मरता क्या न करता, इसलिए भूखे सांप अपनी जान बचाने जो भी मिलता है, उसे पीने लगते हैं. उन्हें नहीं पता होता कि वह दूध पी रहे हैं या कुछ और.

मोइज कहते हैं, सांपों को इस तरह दूध पिलाना और उनका प्रदर्शन करना वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार कानूनन अपराध है. बावजूद इसके सब धड़ल्ले से हो रहा है. अधिकारियों और जानकारों के आगे खुलेआम सांपों पर क्रूरता होती है, लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता, कोई कार्रवाई नहीं होती.

मोइज के मुताबिक, सपेरे सांपों के दांतों को भी तोड़ देते हैं और उनकी जहर की थैली को लोहे की गर्म रॉड से दाग देते हैं. इससे जहर बनना बंद हो जाता है. जहरीले सांप जहर से ही अपना भोजन पचाते हैं. जहर न बनने से उनका हार्मोन सिस्टम खराब हो जाता है. सांप धीरे-धीरे कमजोर होने लगता है और एक-दो साल में उसकी मौत हो जाती है. दांत तोड़ने से दोबारा उग आते हैं. इसलिए सपेरे वेनम थैली को जलाकर जहर खत्म कर देते हैं. फिर सांप काट भी ले तो कोई फर्क नहीं पड़ता.

सर्पदंश को लेकर अखबार में छपी खबर

झाड़फूंक के चक्कर में मरते हैं लोग

समाज में सांप के कांटने और उसके बाद खुद ही इलाज करने जैसे कई प्रकार के अंधविश्वास फैले हुए हैं. इनके बारे में नोवा नेचर के सदस्य लोगों को जागरूक भी करते हैं. वे लोगों को बताते हैं कि आमतौर पर सांप इंसानों को नहीं काटते, लेकिन अगर कोई सांप काट भी लिया तो पीड़ित को शांत रहना चाहिए, हड़बड़ी मचाने से ब्लड प्रेशर बढ़ता है और जहर तेजी से शरीर में फैलता है.
मेडिकल मदद मिलने तक पीड़ित को शांत रहना चाहिए और शरीर के जिस हिस्से पर सांप ने काटा है उसे हिलाना नहीं चाहिए. घाव को धोने, घरेलू इलाज करने में समय नष्ट करने की बजाए मरीज को जल्द से जल्द अस्पताल ले जाना चाहिए. फिल्मों में दिखाए गए काट कर चूसने जैसे फिल्मी नुस्खों का प्रयोग नहीं करना चाहिए और ही दबाव डालने वाली पट्टी बांधना चाहिए. ये दोनों ही गलत अवधारणाए हैं.

मोइज के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अभी भी सांप काटने पर झाड़फूंक के चक्कर में फंस जाते हैं. मामला बिगड़ने पर पीड़ित को अस्पताल ले जाते हैं. तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. मरीज को अगर तत्काल अस्पातल ले जाया जाए और उसे जल्द से जल्द एंटी वेनम दिया जाए तो मौत की संभावना न के बराबर होगी. पर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को समझाना थोड़ा मुश्किल होता है. झाड़फूंक के चक्कर में दर्जनों लोग हर साल गंवाते हैं.

रायपुर नगर निगम के सभापति प्रमोद दुबे के साथ संस्था के अध्यक्ष एम. सूरज और सचिव मोइज अहमद.

सांप काटने पर बरतें सावधानी

– सांप काटने पर तुरंत एंबुलेंस को कॉल कर बुलाएं
– पीड़ित को स्थिर रखें. किसी भी प्रकार के गहने, पट्टा, घड़ी आदि को हटा दें. सर्पदंश के बाद सूजन आता है.
– एंबुलेंस आने में देरी हो तो प्रतिक्षा न करें. तुरंत मरीज को अस्पताल लेकर जाएं.
– मरीज को एक करवट लिटा दें और दाहिने पैर को हल्का मुड़ा रखें. बाजुओं को सिर के नीचे रखें, ताकि सांस लेने में तकलीफ न हो.
– डॉक्टर को सर्पदंश से संबंधित सारी जानकारियां दें, कुछ छुपाएं नहीं. सांप के विष (प्रतिदंश विष) से निर्मित दवा ही सर्पदंश का एकमात्र इलाज है.

यह न करें

– बिल्कुल भी घबराएं नहीं. घबराने से रक्तचाप (बीपी) बढ़ता है और जहर तेजी से फैलता है.
– झाड़फूंक आदि से सर्वाधिक जान जाने का खतरा होता है. बिल्कुल भी झाड़फूंक न कराएं. सांप को न मारें. ये सारे अंधविश्वास हैं.
– सर्पदंश को चूस कर निकालने की कोशिश न करें. अन्य इलाजों में भी समय बर्बाद न करें.
– सर्पदंश के पास कोई पट्टी न बांधे. बर्फ से सिंकाई या मालिश न करें. ये उपाय और अधिक नुकसान पहुंचाते हैं.
– स्वयं से कोई भी चिकित्सा न करें. किसी भी घरेलू या प्रचलित नुस्खों या जड़ी-बूटी का प्रयोग न करें.

सर्पदंश से बचने कारगर उपाय

– घर के आसपास सफाई रखें. लकड़ी, ईंट, पत्थरों के ढेर न रखें.
– जमीन पर न सोएं. मच्छरदानी का उपयोग करें. इससे आप सांप, मच्छर व अन्य जंगली जीवों से सुरक्षित रहेंगे.
– स्कूलों एवं पंचायतों के माध्यम से सर्पदंश से संबंधित जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन करते रहें.
– रात को बाहर अंधेरे में जाने की स्थिति में टार्च लाइट का इस्तेमाल अवश्य करें.
– खेतों व जंगली क्षेत्रों में जाने की स्थिति में पैरों में जूते का उपयोग करें.

सांप रेस्क्यू के लिए इन नंबरों पर करें फोन

रायपुर: चेतन सिंह-97708-68835, राम निषाद- 78796-46482, अवध बिहारी- 79996-69112, बबलू राव- 7415687721, चिरंजिवी राव- 88278-84455
दुर्ग-भिलाई: एम. सूरज- 99934-54757, अजय चौधरी- 97538-07733, रवि ठाकुर- 91314-74227, विजय शर्मा- 97708-33346, आदित्य नाग- 91313-06280
कवर्धा: अविनाश सिंह- 79879-04596, नीलू सोनी- 99936-00938
गरियाबंद: नितेश साहू- 87703-13565, ओम नागेश- 91310-23298, भूपेंद्र जगत- 70495-01574
कोरबा: जितेंद्र सारथी- 83056-34711, देवोशिष रॉय- 70006-28886
बीजापुर: शांतिलाल वर्मा- 62678-33767
लोरमी: दिवाकर सिंह राजपूत- 78695-70207
अंबिकापुर: सत्यम द्विवेदी- 90741-23714
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