निकष परमार: प्रकृति, संवेदना और यथार्थ के कवि

छत्तीसगढ़ गाथा डेस्क/

अगर आपने कवि और वरिष्ठ पत्रकार निकष परमार की कविताएं नहीं पढ़ीं तो जल्द पढ़ लेना चाहिए. निकष की कविताएं प्रकृति, संवेदना और यथार्थ के इतने करीब हैं कि पढ़ने वालों को लगता है कि यह उनकी ही कविताएं हैं. भावों को शब्दों में वे कुछ तरह पिरो देते हैं कि कविता सीधे दिल में उतर जाती है.

रायपुर निवासी निकष परमार का जन्म 25 जून 1967 को बागबहरा में हुआ, जो उनका ननिहाल है. जीवन के 24 बसंत धमतरी में गुजारे, जहां पिता नारायण लाल परमार कॉलेज में हिंदी के प्राध्यापक थे. मां इंदिरा परमार भी विद्यालय में पढ़ाती थीं. दोनों साहित्यकार थे. इस तरह निकष को साहित्य का संस्कार विरासत में मिला. उन्हें विरासत में अभाव और संघर्ष भी मिला, जिनसे बहुत कुछ सीखा और उन्हें कविताओं के रूप में दर्ज भी किया. पॉलिटेक्निक में सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर उन्होंने 1990 में अखबार में काम करना शुरू किया. तब से यही कर रहे हैं. कुछ समय एक हिंदी दैनिक के संपादक भी रहे. फिलहाल वे छत्तीसगढ़ के एक प्रतिष्ठित अखबार में वरिष्ठ उप संपादक के पद पर कार्यरत हैं. उनका एक बेहद चर्चित कविता संग्रह ‘पृथ्वी पर जन्म लेने के बाद’ प्रकाशित हुआ है. दूसरा जल्द प्रकाशित होने की प्रतिक्षा में है. वे अच्छे फोटोग्राफर भी हैं. निकष की कविताएं और उनकी खींची तस्वीरों को आप उनके फेसबुक वॉल पर भी देख सकते हैं.

निकष परमार की कुछ कविताएं…

1.

मैं भी आया था शहर
—————-
जंगल से भटक कर
बस्ती में आ पहुंचा चीतल
उसे कुत्तों ने नोचकर मार डाला

बरसों पहले
छोड़कर अपना घर
मैं भी आया था शहर

2.

मैना
—-
मैना को बचाने के लिए
उन्होंने उसे अपने पिंजरे में कैद कर लिया

उनके पास यही एक तरीका था
मैना को बचाने का

पिंजरे में रहते रहते मर गई मैना

मैना तो उसी दिन मर गई थी़
जिस दिन पिंजरे में कैद हुई थी

3.

दुनिया के सबसे घने जंगल
———————
मैं बेहद घने जंगलों में रहता हूं
शायद दुनिया के सबसे घने जंगलों में

और यह दिन पर दिन
और घना होता जा रहा है

रोज कोई न कोई कहीं कोई पेड़ लगा देता है
किसी की याद में या उसके बगैर भी

किसी किसी दिन तो लोग
एक ही दिन में लाखों पेड़ लगा डालते हैं

पहले से यहां करोड़ों
या फिर अरबों पेड़ लगाए जा चुके हैं
उसके बाद भी वे
नये पेड़ लगाने के लिए जमीन ढूंढ निकालते हैं

सब मिलकर पेड़ लगाते हैं
कोई पीछे नहीं रहना चाहता
इस जंगल की हरियाली बढ़ाने के काम में

फल के, फूल के, छाया वाले, औषधि वाले
सब तरह के पेड़ हैं यहां
जिनकी तादाद दिन पर दिन
बढ़ती जा रही है
जंगल और घना होता जा रहा है

होते होते
यह जंगल इतना घना हो गया है
कि इसमें रहते हुए अब
दम घुटने लगा है

4.
आदमी जब सूरज हो जाता है
———————-
आदमी जब सूरज हो जाता है
तब बहुत से लोगों की सुबह
उससे होने लगती है
और वे उसे फिर से
आदमी नहीं बनने देते

आदमी जब सूरज हो जाता है
तो वह जहां होता है
वहां उजाला हो जाता है

आदमी जब सूरज हो जाता है
तो वह कभी नहीं मान पाता
कि दुनिया के अंधेरे हिस्से में
क्या हो रहा है

5.
आग और धुआं
————
ये तो तय था
कि आग किसी गरीब के घर
नहीं लगी थी

वरना धुआं
सारे शहर को
दिखाई नहीं देता

6.

दोस्तों के पते
———-
जिंदा रहने की लड़ाई ने
जिंदा रहने की वजह के बारे में
सोचने का समय नहीं दिया

भीड़ के साथ दौड़ते दौड़ते
मैं घर से बहुत दूर चला आया

कुछ बरस पुरखों का पुण्य बेचकर पेट भरता रहा
फिर रोजी रोटी के लिए मुझे गिरवी रखना पड़ा
अपना वक्त
जिसे फिर छुड़ा नहीं सका

घर वालों को जब जब जरूरत पड़ी
मेरे पास उनके लिए कुछ भी नहीं था
सिवा बहानों के

धीरे धीरे बहाने खत्म हो गए
खत्म हो गए घर वालों के सवाल
दोस्तों को चिट्ठियों में लिखने लायक बातें खत्म हो गईं
और एक एक कर उनके
पते खो गए

7.

वह सब कुछ
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मैं तुम्हें देना चाहता था वह सब कुछ
जो पिताजी ने मां को दिया

और वह सब भी
जो वे उसे
देना चाहते थे

8.

बस्तर से लौटकर
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हम एक दिन के लिए बस्तर जाते हैं
और दुनिया को बस्तर के बारे में बताते हैं
बस्तर से लौटकर

हम बस्तर की धरती पर ऐसे कदम रखते हैं
जैसे चांद पर इंसान ने पहला कदम रक्खा हो

हम बस्तर के आदिवासियों से बात करते हैं
और उन्हें हिम्मत देने की कोशिश करते हैं
कि हम आ गए हैं
अब सब ठीक हो जाएगा

ये हम भी जानते हैं
और बस्तर के आदिवासी भी जानते हैं
कि ये लोग अपने काम से आए हैं
और जिस गाड़ी से आए हैं
शाम तक
उसी से वापस लौट जाने वाले हैं

9.

रास्ते
—-
हमें जहां जाना था
वहां का रास्ता बहुत खराब था
लेकिन हमें वहीं जाना था
इसलिए उसी रास्ते से जा रहे थे

हम सब रास्ते भर
खराब रास्तों की ही
चर्चा करते रहे

शहर में नई सड़कें बन रही थीं
जो वहां नहीं जाती थीं
जहां हमें जाना था

शहर के सारे अच्छे रास्तों पर चलकर भी
वहां नहीं जाया जा सकता था
जहां हमें जाना था

10.

पृथ्वी पर जन्म लेने के बाद
———————

दुनिया में हैं और भी लड़कियां
पर मैं तुम जैसी किसी लड़की को
नहीं जानता

आकाशगंगा में हैं और भी नक्षत्र
मगर उनमें से
हम नहीं चुनते अपना सूर्य

और ग्रहों पर भी होगा जीवन
उसे कौन ढूंढता है
पृथ्वी पर जन्म लेने के बाद

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