छत्तीसगढ़ की पहली महिला फिल्म निर्देशक, अबूझमाड़ की कहानी पर बना रहीं फिल्म

प्रफुल्ल ठाकुर/

त्तीसगढ़ फिल्म इंडस्ट्री में अब तक पुरुष ही निर्देशन करते आए हैं. अब एक महिला निर्देशक की धमाकेदार एंट्री होने जा रही है. ये हैं पल्लवी शिल्पी, जो अभिनेत्री भी हैं और नाटकों का निर्देशन करती रही हैं. वे बस्तर के आदिवासियों के पलायन पर फिल्म बना रही हैं. यह बस्तर के घनघोर नक्सल प्रभावित अबूझमाड़ के एक गांव के एक आदिवासी परिवार की कहानी है. फिल्म के पहले चरण की शूटिंग पूरी हो चुकी है. जल्द ही दूसरे चरण की शूटिंग शुरू होगी. फिल्म के जनवरी-फरवरी तक रिलीज होने की संभावना है.

फिल्म का निर्माण निर्वाणोम फिल्म्स के बैनर तले हो रहा है. फिल्म के निर्माता विक्रांत झा हैं. वे राजनांदगांव के रहने वाले हैं. वे पिछले पांच वर्षों से फिल्म इंडस्ट्री में एडिटर हैं. इससे पहले भी वे एक फीचर फिल्म प्रोड्यूस कर चुके हैं. फिल्म में बॉलीवुड व छॉलीवुड के कलाकारों का जमघट है. फिल्म के मुख्य किरदार में नलिनीश नील हैं, जो द व्हाइट टाइगर, छिछोरे, गुलाबो सिताबो, रईस व भोर जैसी बॉलीवुड फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके हैं. वहीं उनके अपोजिट एनएसडी से पासआउट और शेरनी व सोनचिरैया जैसी फिल्में कर चुकीं संपा मंडल हैं. इसके अलावा जाने-माने एक्टर संजय बत्रा, छोटे पर्दे के मशहूर कलाकार सबर पराशर, सुभाष बंसोड, अभिषेक बाबा, अरुण भांगे, भवानी शंकर, शिवा कुमार जैसे कलाकार फिल्म में अभिनव करते हुए दिखाई देंगे. फिल्म में अबूझमाड़ के 7 वर्षीय राजेश कोर्राम ने भी अभिनय किया है. राजेश मलखंभ के राष्ट्रीय खिलाड़ी हैं, जिन्होंने इस खेल में छत्तीसगढ़ को पहला गोल्ड मैडल दिलाया था. बाताया जा रहा है कि फिल्म में राजेश का अभिनय देखने लायक होगा. नक्सली ज्यादती का शिकार राजेश और उसका परिवार नारायणपुर में रहता है. राजेश पोटा केबिन में रहकर अपनी पढ़ाई कर रहा है. फिल्म नारायणपुर के जंगलों में रियल लोकेशन्स पर शूट हुई है.

पल्लवी के मुताबिक, उनका काम छत्तीसगढ़ में अपनी तरह का पहला काम है. फिल्म में बस्तर की समस्याओं के साथ वहां की कला-संस्कृति को भी बखूबी दिखाने की कोशिश की गई है. फिल्म किसी भी ‘वाद’ से ग्रसित नहीं है. जो जैसा है, उसे वैसा दिखाने की कोशिश की गई है. फिल्म आज के परिदृश्य पर है, पर बायोबिक नहीं है. फिल्म का विषय रोचक है, जो दर्शकों को पसंद आएगा. फिल्म में आदिवासी संगीत का बढ़िया इस्तेमाल किया जा रहा है, जो लोगों को काफी कर्णप्रिय लगेगा.

शॉर्ट फिल्म बनी फीचर फिल्म

पल्लवी बताती हैं कि एक और फिल्म पर काम कर रही हैं. उस फिल्म के लिए वे प्रोड्यूसर और बैनर खोज रही थीं. तभी उनके दिमाग में एक शार्ट फिल्म का आइडिया आया, जिसे नेशनल-इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में दिखाया सके. यह एक आदिवासी परिवार की कहानी थी, जिस पर उन्होंने काम करना शुरू किया. रिसर्च और लोगों से बातचीत करते-करते लगा कि इस पर तो एक बढ़िया फीचर फिल्म भी बनाई जा सकती है. फिर क्या था, शॉर्ट फिल्म को फीचर फिल्म में बदलने का काम शुरू कर दिया और जल्द ही नए सिरे से कहानी तैयार की गई. फिल्म की कहानी उन्होंने और संगीता निगम ने मिलकर लिखी है. पल्लवी कहती हैं-‘अपनी-अपनी जमीन’ नाम से बन रही यह फिल्म उनके लिए संभावनाओं के नए द्वार खोलेगी.

फिल्म फेस्टिवल भेजने की तैयारी

पल्लवी के मुताबिक, फिल्म में अबूझमाड़ की कहानी है. इसलिए फिल्म की शूटिंग रियल लोकेशन पर ही की जा रही है. फिल्म के पहले चरण की शूटिंग नारायणपुर के जंगलों में हुई है. इसमें जिला और पुलिस प्रशासन का भरपूर सहयोग रहा. पल्लवी बताती हैं कि यह एक कामर्शियल आर्ट फिल्म है. जिसे पहले फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित किया जाएगा. उन्हें पूरी उम्मीद है कि फिल्म कई बड़े नेशनल और इंटरनेशनल अवार्ड जीत सकती है. फिल्म को मल्टीप्लेक्स और ओटीटी प्लेटफार्म पर भी रिलीज किया जाएगा. 90 मिनट की इस फीचर फिल्म के दूसरे चरण की शूटिंग अक्टूबर-नवंबर में होगी.

पल्लवी के बारे में…

रायपुर की रहनी वाली पल्लवी की स्कूली शिक्षा केंद्रीय विद्यालय से हुई. इसके बाद उन्होंने पॉलिटेक्निक की पढ़ाई की और फिर भिलाई इंस्टिट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी (बीआईटी) भिलाई से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की. छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल में असिस्टेंट इंजीनियर के तौर पर उनकी नौकरी भी लगी, लेकिन उन्होंने ज्वाइन नहीं किया. उनका मन क्रिएटिव फील्ड में काम करने का था. वे कॉलेज के समय से ही स्कल्पचर और पेंटिंग बनाने लगी थीं. उन्होंने इसके कई एग्जिबिशन भी लगाए. कॉलेज के समय से ही वे प्रोफेशनल तौर पर काम करने लगी थीं. बहुत सारे आर्ट कैंप में भी वे शामिल हुईं. कॉलेज के बाद उन्होंने एनिमेशन फिल्म मेकिंग का कोर्स किया और रिलायंस मीडिया में एनिमेशन मॉडलर के तौर पर काम किया. फिर बालाजी टेलीफिल्म की आइस अकेडमी से फिल्म डॉयरेक्शन का कोर्स किया. कुछ टीवी सीरियल में बतौर असिस्टेंट डॉयरेक्टर का काम किया. एक बुदेलखंडी फिल्म में आर्ट डॉयरेक्शन के साथ एक्टिंग भी की. फिल्म कई फिल्म फेस्टिवल में गई और इसने पुरस्कार भी जीते.

इसके बाद उनका रुझान नाटकों की ओर हुआ. उन्होंने जयंत देशमुख, आलोक चटर्जी, अशोक मिश्र, शिवदास घोड़के, हीरा मानिकपुरी व योग मिश्रा जैसे छत्तीसगढ़ के बड़े नाट्य निर्देशकों के साथ काम किया. फिर खुद ही नाट्य निर्देशन करने लगीं. पिछले पांच वर्षों से वे बच्चों को नाटक सिखा रही हैं. उनके निर्देशन में बच्चों के एक नाटक को राष्ट्रीय नाट्य प्रतियोगिता में दूसरा पुरस्कार प्राप्त हुआ है. उन्होंने कुछ शार्ट फिल्म और डाक्यूमेंट्री भी बनाई है. उन्होंने जेल में महिला कैदियों के साथ एक महीने का नाट्य वर्कशॉप भी किया है. उन्होंने एक एडल्ट प्ले ‘रास बिहारी’ का निर्देशन किया था, जो काफी चर्चा में रहा था.
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