किशोर साहू: मीना कुमारी के नायक नहीं बन सकें, लेकिन ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ ने मचाई धूम

रमेश अनुपम/

हिंदी सिनेमा के महान शख्सियत, अभिनेता, निर्माता, निर्देशक, पटकथा लेखक, साहित्यकार, चित्रकार किशोर साहू का आज (22 अक्टूबर) जन्मदिन है. उनका जन्म, उनका बचपन और उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा इसी राज्य में हुई. किशोर साहू छत्तीसगढ़ के ऐसे लाडले सपूत थे जो जीवनभर छत्तीसगढ़ और उसकी संस्कृति से प्रेम करते रहे. उन्होंने अपनी आत्मकथा में इस बात को स्वीकार किया है कि उनके व्यक्तित्व को गढ़ने और संवारने में छत्तीसगढ़ का बहुमूल्य योगदान रहा है.

बाम्बे टॉकीज के हिमांशु राय ने न केवल किशोर साहू की अभिनय प्रतिभा को पहचाना, बल्कि उसे अपनी पत्नी तथा उस जमाने की प्राख्यात और खूबसूरत नायिका देविका रानी के साथ ‘जीवन प्रभात’ फिल्म में नायक के रूप में अभिनय करने का अवसर भी प्रदान किया.

‘जीवन प्रभात’ सन् 1937 में निर्मित किशोर साहू अभिनीत पहली फिल्म थी. 1940 में किशोर साहू ने स्वंय की एक प्रोडक्शन कंपनी ‘इंडिया आर्टिस्ट लिमिटेड कंपनी’ के बैनर तले ‘बहूरानी’ फिल्म का निर्माण किया. चौबीस वर्षीय किशोर साहू इस फिल्म के नायक, निर्माता तथा निर्देशक थे. इस फिल्म ने किशोर साहू को नायक और निर्देश के रूप में अपार ख्याति प्रदान की.

1940 में ही किशोर साहू अभिनीय फिल्म ‘पुनर्मिलन’ भी रिलीज हुई. इस फिल्म में उनकी नायिका स्नेह प्रभा प्रधान थीं. यह फिल्म भी ‘बहूरानी’ की तरह ही सुपरहिट साबित हुई. इस फिल्म ने सिल्वर जुबली भी मनाई. उस जमाने में किसी हिंदी फिल्म का सिल्वर जुबली मनाना अपने आप में एक बड़ी घटना मानी जाती थी.

किशोर साहू द्वारा अभिनीत तथा निर्देशित तीसरी फिल्म ‘कुंवारा बाप’ थी जो हिंदी की पहली हास्य फिल्म थी. इसमें प्रतिभा दास गुप्ता नायिका थीं. यह फिल्म 1942 में रिलीज हुई. इस हास्य फिल्म की पटकथा किशोर साहू द्वारा ही लिखी गई थी.

उनके द्वारा अभिनीत और निर्देशित ‘राजा’ चौथी फिल्म थी जो 21 अगस्त 1943 में मुंबई के नॉवेल्टी सिनेमाघर में रिलीज हुई. यह फिल्म एक गंभीर फिल्म थी. जिसमें किशोर साहू के अभिनय एवं निर्देशन को सिनेमा के आलोचकों और प्रबुद्ध दर्शकों ने बेहद सराहा. गुरूदत्त की सुप्रसिद्ध फिल्म ‘प्यासा’ एक तरह से ‘राजा’ से ही प्रेरित थी. गुरूदत्त स्वयं किशोर साहू से मिले थे और ‘राजा’ फिल्म से प्रेरित अपनी फिल्म ‘प्यासा’ की पटकथा के बारे में उनसे सलाह मशविरा भी किया था.

सम्राट अशोक की पत्नी तिष्यरक्षिता और पुत्र कुणाल की कहानी को लेकर किशोर साहू ने ‘वीर कुणाल’ नामक फिल्म का निर्माण किया. इस फिल्म में उन्होंने स्वंय ‘कुणाल’ की भूमिका निभाई. इतिहास से प्रेरित इस फिल्म का पहला प्रदर्शन मुंबई के नॉवेल्टी थियेटर में एक दिसंबर 1945 को हुआ. इस फिल्म के प्रदर्शन के अवसर पर सरदार वल्लभ भाई पटेल भी उपस्थित थे.

सरदार वल्लभ भाई पटेल ने ‘वीर कुणाल’ की भूरि-भूरि प्रशंसा की. ‘फिल्म इंडिया’ के संपादक बाबू भाई पटेल ने इस फिल्म को देखने के बाद किशोर साहू को आचार्य किशोर साहू की पदवी से विभूषित किया. उन्होंने ‘फिल्म इंडिया’ में लिखा- किशोर साहू ने इस फिल्म के माध्यम से यह सिद्ध कर दिया कि वे हिंदी सिनेमा के आचार्य हैं.

किशोर साहू द्वारा निर्देशित ‘सिंदूर’ उनकी सातवीं फिल्म थी. इस फिल्म की पटकथा तथा संवाद भी किशोर साहू ने लिखे थे. यह हिंदू विधवा के जीवन पर आधारित एक चैलेंजिंग फिल्म थी. इस फिल्म में नायक स्वयं किशोर साहू थे तथा नायिका शमीम थीं.

यह फिल्म 7 जून सन् 1947 को मुंबई के रॉक्सी थियेटर में रिलीज हुई. यह फिल्म राक्सी थियेटर में बत्तीस सप्ताह तक चली और अब तक की लोकप्रिय सारी हिंदी फिल्मों के रिकॉर्ड तोड़ दिये. फिल्मीस्तान प्रोडक्शन जो स्वयं किशोर साहू का प्रोडक्शन हाउस था के बैनर तले बनी इस फिल्म को सिम्पा द्वारा बेस्ट फिल्म तथा बेस्ट फिल्म डायरेक्टर का अवॉर्ड प्रदान किया. आजादी के दो माह पूर्व रिलीज इस फिल्म में किशोर साहू ने विधवा नारी के जीवन का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया था जिससे प्रेरित उस समय अनेक लोगों ने विधवा स्त्रियों से विवाह कर उन्हें एक नया जीवन दिया. किशोर साहू अपने समय और समाज के गंभीर सरोकारों से जुड़े हुए एक गंभीर तथा जिम्मेदार नायक निर्देशक थे जो अपनी फिल्मों के माध्यम से भारतीय समाज को संदेश देना चाहते थे, एक नई दिशा की ओर प्रेरित करना चाहते थे. अपनी एक और फिल्म ‘राजा’ में भी वे इससे पहले ऐसा कर चुके थे.

सन् 1949 में निर्मित ‘सावन आया रे’ किशोर साहू की प्रेम प्रधान फिल्म थी. इस फिल्म का निर्माण तथा निर्देशन भी किशोर साहू ने किया था. इस फिल्म की नायिका उस जमाने की चुलबुली नायिका रमोला थीं. यह फिल्म 13 मई 1949 को मुंबई के कृष्णा और कैपिटल टाकीज में एक साथ रिलीज हुई. इस फिल्म को सन् 1949 का बेस्ट फिल्म अवार्ड का अवार्ड प्राप्त हुआ.

सन् 1951 में किशोर साहू ने ‘काली घटा’ फिल्म का निर्माण तथा निर्देशन किया. इस फिल्म के नायक किशोर साहू तथा नायिका के रूप में उन्होंने एक नई नायिका कृष्णा सरीन को अनुबंधित किया और उसे नया नाम भी दिया, जो बाद में बीना राय के नाम से हिंदी सिनेमा में जानी गईं. ‘काली घटा’ सर्वप्रथम मुंबई में 1 जून 1951 को इम्पीरियल तथा कैपिटल थियेटर में प्रदर्शित हुई. बाद में 30 जून 1951 को नागपुर के लिबर्टी थियेटर में यह फिल्म प्रदर्शित की गई. नागपुर में उस दिन लिबार्टी थियेटर में मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल तथा गृहमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्र उस फिल्म को देखने के लिए पहुंचे थे

सन् 1951 में किशोर साहू द्वारा अभिनीत ‘बुजदिल’ फिल्म प्रदर्शित हुई. इसमें उनकी नायिका निम्मी थीं. इस फिल्म ने भी ठीक-ठाक कारोबार किया. पं. केदार शर्मा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘सपना’ भी किशोर साहू की ठीक-ठाक फिल्म थी. इसमें उनकी
नायिका बीना राय थीं. पाल जिल्स द्वारा निर्देशित ‘जलजला’ जिसमें किशोर साहू नायक तथा गीता बाली नायिका थी, ज्यादा नहीं चल पाई. पाल जिल्स एक कमजोर निर्देशक साबित हुए.

1954 में किशोर साहू द्वारा निर्मित तथा निर्देशित ‘हेमलेट’ जो शेक्सपियर के बहुचर्चित नाटक ‘हेमलेट’ पर आधारित थी. इसमें स्वयं किशोर साहू नायक थे. इस फिल्म में उन्होंने एक नई अभिनेत्री माला सिन्हा को अवसर दिया. यह फिल्म किन्हीं कारणों से दर्शकों पर कुछ खास प्रभाव नहीं डाल पाई. ‘हेमलेट’ पर फिल्म बनाना तथा उसमें अभिनय करना किशोर साहू का एक बहुत बड़ा सपना था. नागपुर के मॉरिस कॉलेज में पढ़ते हुए बार-बार उनका मन ‘हेमलेट’नाटक की ओर ही जाता था.

सन् 1954 में निर्मित एवं निर्देशित फिल्म ‘मयूरपंख’ अनेक दृष्टि से हिंदी की ऐतिहासिक फिल्म साबित हुई. यह पहली मेगाकलर हिंदी फिल्म थी. इस फिल्म में पहली बार किसी विदेशी नायिका एवं नायक को परदे पर प्रस्तुत किया गया था. फ्रांस की सुप्रसिद्ध तारिका आॅडेट फरग्युसन तथा नायक आॅद्रे थामा को इस फिल्म में प्रमुख किरदार के रूप में प्रस्तुत किया गया. इस फिल्म की शूटिंग मध्यप्रदेश के कान्हा किसली के जंगल में की गई. इस शूटिंग की सारी व्यवस्था की जिम्मेदारी राजनीति के शिखर तक पहुंचने वाले छत्तीसगढ़ के नेता विद्याचारण शुक्ल को सौंपी गई थी. यह पहली हिंदी फिल्म थी जिसे कान फिल्म फेस्टिवल में आमंत्रित किया गया.

इन फिल्मों के अतिरिक्त किशोर साहू ने ‘साजन’, ‘हमारा घर’, ‘बिजली’, ‘जन्माष्टमी’, ‘औरत’, ‘तीन बहूरानियां’, ‘गृहस्थी’, ‘घर बसा के देखो’, ‘पूनम की रात’, ‘नदिया के पार’, ‘पुष्पांजलि’, ‘हरे कांच की चूडियां’ तथा ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ जैसी फिल्मों का निर्माण एवं निर्देशन किया. ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ की परदे के पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है. इस फिल्म में किशोर साहू मीना कुमारी के साथ स्वयं नायक की भूमिका अदा करना चाहते थे, पर मीना कुमारी के पति कमाल अमरोही को किशोर साहू का नायक बनना तथा मीना कुमारी के साथ काम करना पसंद नहीं था, सो राजकुमार जो उस समय हिंदी फिल्म उद्योग में नये थे, उन्हें नायक के रूप में लिया गया. फिल्म बनी, फिल्म बनने के पश्चात कमाल अमरोही ने देखा पर यह फिल्म उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं आई. उन्होंने घोषित कर दिया कि यह फिल्म बाक्स आॅफिस पर बुरी तरह से फ्लॉप साबित होगी. इस फिल्म को उन्होंने महीनों लटकाये रखा. बाद में के. आसिफ के कहने पर इसे रिलीज तो होने दिया पर इस शर्त के साथ कि इसके निर्माता के रूप में उनका नाम पोस्टर पर नहीं जायेगा, बल्कि उनके स्थान पर उनके एक अन्य सहायक एस. एस. बाकर का नाम जायेगा. 26 अप्रैल 1960 को ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ मुंबई के रॉक्सी थियेटर में प्रदर्शित हुई. इस फिल्म के प्रदर्शन के पश्चात पूरे देश में किशोर साहू के निर्देशन की धूम मच गई. यह फिल्म बॉक्स आॅफिस पर सुपरहिट साबित हुई. कमाल अमरोही की आशंकाएं और दुश्चिाताएं निराधार साबित हुईं. कमाल अमरोही ने इस फिल्म की सफलता के पश्चात मुंबई के पोस्टरों में निर्माता के रूप में छपे हुए बाकर के नाम को मिटाकर रातों-रात अपना नाम लिखवाया. किशोर साहू के निर्देशन की यह बड़ी सफलता थी.

एक और कमाल किशोर साहू ने हिंदी फिल्म में किया था. ‘सावन आया रे’ जो उनकी सन् 1949 में निर्देशित तथा अभिनीत फिल्म थी, उसकी सारी शूटिंग नैनीताल में की गई. इस तरह यह हिंदी की पहली फिल्म थी, जिसने हिंदी फिल्मों में आउटडोर शूटिंग
की परम्परा प्रारंभ की. इसके पहले मुंबई के किसी स्टूडियो में सेट बनाकर फिल्म की शूटिंग कर ली जाती थी. किशोर साहू का हिंदी फिल्मों में केवल इतना ही अवदान नहीं है, उन्होंने दिलीप कुमार, माला सिन्हा, कामिनी कौशल, साधना, बीना राय, राजश्री, परवीन बॉबी जैसी अपने जमाने की चर्चित अभिनेत्रियों और अभिनेताओं को अपनी फिल्म में पहला मौका दिया. रवींद्रनाथ ठाकुर, भगवती चरण वर्मा, अमृत लाल नागर, इस्मत चुगताई, सआदत सहन, मंटो, धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, सुमित्रानंदन पंत जैसे
साहित्यकारों से उनके जीवंत संपर्क थे. अपने समय की राजनीति में भी वे काफी घुले मिले थे. सरदार वल्लभ भाई पटेल, जय प्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया से उनके अभिन्न संबंध थे.

किशोर साहू ने अपने निर्देशन में बनी फिल्म ‘नदिया के पार’ में करियर के हिसाब से उस समय हिचकोले खा रहे मशहूर अभिनेता दिलीप कुमार को बतौर नायक के रूप में लिया और दिलीप कुमार की नैया को अपनी इस फिल्म के माध्यम से सफलता के पार पहुंचाया. इस फिल्म में नायिका कामिनी कौशल थीं. ‘नदिया के पार’ में दिलीप कुमार के मुंह से किशोर साहू ने कुछ संवाद छत्तीसगढ़ी में भी बुलवाए. यह छत्तीसगढ़ के प्रति उनके अटूट लगाव और प्रेम का परिचायक है. छत्तीसगढ़ की माटी में जन्में और पले-बढ़े हिंदी सिनेमा के इस सुुपर स्टार की मृत्यु अमेरिका से बैंकाक के लिए उड़ान भरते समय सन् 1980 में हुई. मृत्यु के समय उनकी पत्नी प्रीति साहू उनके साथ थीं. छत्तीसगढ़ की माटी में जन्म लेने वाले, अपने अभिनय और निर्देशन से छत्तीसगढ़ का नाम पूरी दुनिया में रोशन करने वाले भारतीय गैलेक्सी के इस सुंदर ग्रह को उनके जन्मदिन पर शत्-शत् नमन.

(रमेश अनुपम छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी हैं. उन्हें राज्य की कला-संस्कृति से बेहद लगाव है)
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