3000 किसानों की बनाई कंपनी, 40 शहरों में बेच रहे आर्गेनिक उत्पाद

प्रफुल्ल ठाकुर/

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिले दंतेवाड़ा के आकाश वड़वे ने जिले के 3000 किसानों को जोड़कर ‘भूमगादी’ नामक एक कंपनी बनाई है. इसके जरिए आकाश प्रदेश में आर्गेनिक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं. भूमगादी एक फार्मर प्रोड्यूशर कंपनी है. इसमें प्रत्येक किसान शेयर होल्डर होता है. आकाश के प्रयासों से दंतेवाड़ा के किसान न केवल आर्थिक रूप से समृद्ध हो रहे हैं, बल्कि लाल क्रांति के गढ़ में हरित क्रांति यह प्रयास एक नई उम्मीद भी जगा रहा है.

मूलरूप से नासिक, महाराष्ट्र में जन्मे और पले-बढ़े आकाश ने बिट्स पिलानी से इलेक्टिकल एंड इलेक्ट्रानिक्स तथा बायोलॉजी से ड्यूल डिग्री कोर्स किया. 2011 में पास आउट होने के बाद आकाश ने ब्रिटिश बैंक की कंपनी बार्कलेश में 9 महीने तक जॉब किया, लेकिन उनका मन वहां नहीं लगा. उनके अंदर हमेशा से प्रकृति के बीच रहकर लोगों के लिए काम का इरादा था. एक दिन उन्होंने वह नौकरी और लाखों का पैकेज छोड़ दिया.

आकाश वड़वे

आकाश के नाना भाऊ नावरेकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. वे गांधीजी और विनोबा भावे के विचारों से बेहद प्रभावित थे. उन्होंने महाराष्ट्र के गांवों में स्वच्छता को लेकर काफी काम किया है. आकाश की परवरिश गांधी-विनोबा के विचारों के बीच हुई. इसलिए उनके अंदर भी बचपन से समाज के लिए कुछ करने का जज्बा और जुनून था, लेकिन क्या करना है, उन्हें तब नहीं मालूम था.

आकाश को बचपन से पर्यावरण के प्रति बहुत लगाव था. वे समाज और पर्यावरण को जोड़कर कुछ नया और बेहतर करना चाहते थे. उन्होंने देखा कि टेक्नोलॉजी पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंची रही है. फिर उन्होंने सोचा कि इसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल पर्यावरण की भलाई के लिए भी तो किया जा सकता है. यही सोचकर उन्होंने बिट्स पिलानी से इंजीनियरिंग करना तय किया.

आकाश बताते हैं, कॉलेज के दिनों में ‘निर्माण’ नाम का छात्रों का एक समूह था, जो गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल जैसे बुनियादी जीचों पर काम करता था. उनके अंदर ग्रामीण जीवन को लेकर थोड़ी-बहुत समझ वहीं से विकसित हुई. इसके अलावा एक बार गर्मियों की छुट्टियों में इंटर्नशिप के लिए इंडियन स्पेश रिसर्च आर्गनाइजेशन (इसरो) जाना हुआ. वहां जाकर लगा कि उनका भविष्य टेक्नोलॉजी में नही हैं, उनकी फील्ड कोई और है.

आकाश को इसी बीच इंडियन इंस्टिट्यूट आफ मैनेजमेंट (आईआईएम) अहमदाबाद के प्रोफेसर अनिल गुप्ता के बारे में जानकारी हुई. प्रो. गुप्ता ने ग्रास रूट इनोवेशन पर काफी काम किया है. नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन (एनआईएफ) के माध्यम से उन्होंने ग्रामीण जीवन को बेहतर बनाने के लिए सैकड़ों इनोवेशन और ट्रेडिशनल नॉलेज का डॉक्यूमेंटेशन किया है. उनकी एक संस्था है सृष्टि, जिसके जरिए शोध यात्राओं का आयोजन होता है. इन यात्राओं से ग्रामीण जीवन को समझने में मदद मिलती है. आकाश ने प्रो. गुप्ता से संपर्क किया तो उन्होंने आकाश को शोध यात्रा में शामिल होने की सलाह दी.

यह शोध यात्रा साल में दो बार गर्मी और ठंड के दिनों में होती है. यात्रा में देश के किसी सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में पैदल जाना होता है. गांवों में जाकर वहां की समस्याओं को देखना, समझना होता है. साथ ही उन समस्याओं को हल करने के ट्रेडिशनल तरीकों को भी समझने की कोशिश करनी होती है.

आकाश ने गुजरात के दाहोद और मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के गांवों की यात्राएं की. आकाश कहते हैं, ‘शहरी लोगों को लगता है कि गांव के लोग कुछ नहीं जानते. वे गांवों में जाएंगे और गांव के लोगों को बताएंगे, जिससे उनकी समस्या हल हो जाएगी. यह बहुत ही गलत अवधारणा है. गांव के लोग सब कुछ जानते हैं. उनके पास पारंपरिक ज्ञान का अथाह भंडार है. किसी भी समस्या को हल करने का सबसे बेहतर और नायाब तरीका उनके पास मौजूद है’.

शोध यात्रा से लौटने के बाद प्रो. गुप्ता ने आकाश को इंटर्नशिप के तहत ‘कॉमन प्रोपर्टी रिसोर्सेस’ पर काम करने की जिम्मेदारी दी. आकाश के लिए यह बिल्कुल नया टॉपिक था पर धीरे-धीरे उन्होंने इसे समझने की कोशिश की. उन्होंने पाया कि इंडीविजुअल और पब्लिक प्रोपर्टी के बीच एक सामुदायिक प्रोपर्टी भी होती है. गांवों में तालाब, चारागाह, गौठान सब इसी का हिस्सा हैं. हजारों सालों से ऐसी प्रोपर्टी रही हैं. खासकर, आदिवासी समुदाय हमेशा से सामुदायिक प्रोपर्टी का ही इस्तेमाल करते आया है. इसके उपभोग के नियम-कायदे होते हैं. जितनी जरूरत, उतना उपभोग. ताकी आने वाली पीढ़ी के लिए भी चीजें बची रहें.

हालांकि आज विकास और आधुनिकीकरण की अंधी दौड़ में ऐसी सामुदायिक प्रोपर्टी धीरे-धीरे खत्म होती जा रही हैं. सामुदायिक प्रोपर्टी का इस्तेमाल करने वाले लोगों को खदेड़ा जा रहा है और विकास के नाम जगहों का विनाश किया जा रहा है. आकाश केमुताबिक, नेचुरल रिसोर्सेज खत्म होने का सबसे बड़ा नुकसान ग्रामीण और गरीब तबके को ही भुगतना पड़ रहा है.

आकाश ने बड़े बदलाव के लिए बड़ा कदम उठाने को सोचा. उन्होंने सोचा, आईएएस बनकर समाज और पर्यावरण के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है. मगर, उन्हें जल्द ही यह ख्याल आया कि एक आईएएस या कलेक्टर को कितने समय के लिए एक जगह पर काम करने का मौका मिलता है? डेढ़, दो या तीन साल से ज्यादा कहीं कोई कलेक्टर बनकर नहीं कर सकता, जबकि सामाजिक बदलाव धीरे-धीरे आता है. उसे समय देना पड़ता है. इस ख्याल के आते ही आकाश ने आईएएस बनने और सिविल सेवा में जाने का ख्याल छोड़ दिया.

इसी बीच आकाश को ‘सर्च’ संस्था के बारे में जानकारी हुई. यह संस्था पद्मश्री डॉ. अभय बंग संचालित करते हैं. उन्होंने महाराष्ट्र में ऐसे युवाओं का नेटवर्क बनाया है जो कुछ अलग करना चाहते हैं. यहां अलग-अलग गतिविधियों के जरिए किसी काम को करने का सही तरीका सिखाया जाता है. आकाश ने संस्था ज्वाइन कर ली. आकाश को वहां कई बातें समझने को मिलीं.

आकाश बताते हैं, उसी समय केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास विभाग ने ‘प्राइम मिनिस्टर रूरल डेवलपमेंट’ फैलोशिप लांच की थी. इस फैलोशिप में देशभर से ऐसे युवाओं का चयन किया जाना था जो अति पिछड़े और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जाकर काम कर सकें. उनके लिए यह सुनहरा मौका था. उन्होंने पर्यावरण और आजीविका को लेकर जिस मॉडल की कल्पना की थी, उसे अब धरातल पर उतारने का वक्त आ चुका था. उन्होंने फैलोशिप के लिए आवेदन किया और सलेक्ट हो गए. सितंबर 2012 में उन्हें छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में काम करने के लिए भेजा गया.

फैलोशिप के तहत आकाश ने साढ़े तीन साल तक दंतेवाड़ा जिले के नक्सल प्रभावित गांवों में काम किया. इस दौरान उन्होंने किसानों को आर्गेनिक खेती के लिए प्रोत्साहित कर संगठित करना शुरू किया. विशेषज्ञों के जरिए किसानों को खेती की नई तकनीक की जानकारी दी, इससे उनका उत्पादन बढ़ने लगा. साथ ही अन्न, पोषण और आर्थिक सुरक्षा को लेकर जागरूक किया. आकाश बताते हैं, दंतेवाड़ा जिले के किसान पहले से ही जैविक खेती कर रहे थे. रासायनिक खाद-बीज का इस्तेमाल जिले में न के बराबर होता था. किसानों के पास जो कमी थी, वह थी तकनीकी ज्ञान की. इसके अलावा उत्पाद को बेचने के लिए उनके पास बाजार नहीं था. इन्हीं कमियों को दूर करने का प्रयास उन्होंने किया है.

आकाश के मुताबिक, दंतेवाड़ा जिले की खेती में काफी विविधता थी, लेकिन उत्पादन की कमी के कारण ज्यादातर किसान परंपरागत और पर्यावरण के अनुकूल फसलों की किस्में नहीं ले रहे थे या काफी कम ले रहे थे. इसकी वजह से धान, दलहन और तिलहन की कई किस्में लुप्त होती जा रही थीं. तकनीकी ज्ञान की कमी के कारण किसान उनका उत्पादन नहीं कर रहे थे. लेकिन जब उन्हें विशेषज्ञों की सलाह मिली और वे सही तरीके से खेती करने लगे तो उन्हीं मुनाफा होने लगा. इससे किसानों में नई ऊर्जा का संचार हुआ. इस तरह धीरे-धीरे बड़ी संख्या में किसान जैविक खेती की ओर अग्रसर होते गए.

आकाश की फैलोशिप मार्च 2016 में पूरी हो गई, लेकिन जैविक खेती को लेकर किसानों को जागरूक और संगठित करने का जो बीड़ा उन्होंने उठाया था, वह अभी पूरा नहीं हुआ था. इसलिए फैलोशिप पूरी होने के बाद आकाश दंतेवाड़ा में ही रुक गए और उस अधूरे काम को पूरा करने की कोशिश में जुट गए.

2016 में दंतेवाड़ा बना जैविक जिला

किसानों की मांग पर 2016 में दंतेवाड़ा को प्रदेश का पहला जैविक जिला घोषित किया गया. इसके तहत जिले में कहीं भी किसी प्रकार के रासायनिक खाद-बीज की खरीदी-बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया. जिले में इसके प्रचार-प्रसार पर भी पूरी तरह पाबंदी हो गई. साथ ही जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जाने लगा. इसमें कृषि विभाग और जिला प्रशासन का अमला भी जुड़ गया और बुनियादी चीजों के विकास को लेकर काम शुरू हुआ. किसानों के लिए केवल स्कीम चला देना भर काफी नहीं था. किसानों को तकनीकी ज्ञान देना भी जरूरी था. इसलिए किसानों को कई जगहों पर भ्रमण कराया गया, जहां जैविक खेती को लेकर अच्छा काम हो रहा है. इससे किसानों का काफी कुछ सीखने को मिला. साथ ही उन्हें विभिन्न साधन-संसाधन भी उपलब्ध कराए गए.

‘भूमगादी’ नाम से बनाई कंपनी

उत्पादन पर तो काम हो रहा था, लेकिन किसानों की सबसे बड़ी चिंता बाजार थी. उनके उत्पाद को खरीदने और उसका सही दाम मिलने की दिक्कत थी. इस दिक्कत को दूर करने के लिए चावल महोत्सव जैसे आयोजन कराए गए, लेकिन यह नाकाफी था. फिर किसानों की एक ऐसी कंपनी बनाने का विचार किया गया, जिसमें प्राथमिक उत्पादक यानी किसान शेयर होल्डर हों. उस पर उनका मालिकाना हक हो. फसलों को बेचने और उसके दाम तय करनें में उनकी भूमिका हो. इस तरह अगस्त 2016 में ‘भूमगादी आर्गेनिक फार्मर्स प्रोडक्शन’ नाम से कंपनी बनाई गई. भूमगादी बस्तर के आदिवासियों का एक प्रमुख त्योहार है. फसल कटने के बाद सभी किसान अपने-अपने घरों से एक-एक मुट्ठी अनाज लेकर आते हैं और अपने आराध्य देव को चढ़ाते हैं. इसके बाद ही उस अन्न का उपयोग करते हैं. कंपनी का नाम किसानों ने खुद रखा. शुरुआत में करीब 100 किसानों के साथ शुरू हुई कंपनी में अब 100 गांवों के 3000 से अधिक किसान जुड़ चुके हैं. जिले को कुल 12 क्लस्टर में बांटा गया है. हर क्लस्टर में एक संचालक होता है. संचालक का चयन किसान अपने बीच में से किसी एक को करते हैं. संचालक और किसान बैठकर तय करते हैं कि कौन सी फसल बेचनी हैं और दर कितनी होगी.

जैविक कार्यकर्ताओं का खड़ा किया नेटवर्क

आकाश ने काम कर रहे सभी 100 गांवों में जैविक कार्यकर्ताओं का नेटवर्क तैयार किया है. किसान और महिलाओं के दर्जनों समूह बनाए. जैविक कार्यकर्ता किसानों और महिलाओं के समूहों के ट्रेनिंग देने से लेकर उनकी हर प्रकार से सहायता करते हैं. फसल बोने से लेकर बेचने तक में जैविक कार्यकर्ता किसानों की मदद करते हैं. फिलहाल कुल 100 जैविक कार्यकर्ता कार्यरत हैं.

लगाई गई है प्रोसेसिंग यूनिट

कंपनी के सीईओ आकाश बताते हैं, किसानों से उत्पाद खरीदने के बाद उसे जिला प्रशासन द्वारा विशेष रूप से तैयार किए गए वेयर हाउसेज में रखा जाता है. सभी क्लस्टर में जिला प्रशासन के सहयोग से प्रोसेसिंग यूनिट्स लगाई गई हैं. वहां पर उत्पादों के वैल्यू एडिशन के साथ उनकी पैकेजिंग की जाती है. फिलहाल 30 परंपरागत किस्मों को प्रमोट किया जा रहा है. इनमें मेहर धान, साठका, गुड़मा, जावा फूल, लोकटी माची, कदम फूल, नीम फूल, देवभोग चावल के साथ कोदो, कुटकी, कुल्थी, गटका, चिकमा, कांग, रामतिल, उड़द, मूंग, काली कुल्थी, हल्दी आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं. मेहर धान, साठका और गुड़मा औषधीय चावल की किस्में हैं. इनमें भरपूर मात्रा में आयरन, मैग्निशियम और मैग्नीज पाया जाता है. यह डायबिटीज, बीपी व हार्ट संबंधी बीमारियों के लिए काफी फायदेमंद होता है. सुगंधित किस्मों में जावा फूल और लोकटी माची में आयरन और जिंक की भरपूर मात्रा होती है. काली कुल्थी और परंपरागत स्थानीय हल्दी अपने आप में औषधीय गुण समेटे हुए है. सभी उत्पादों को बाजार के लायक बनाकर फिर उसकी मार्केटिंग की जाती है.

देश के 40 शहरों में बेच रहे उत्पाद

आकाश बताते हैं, कंपनी के उत्पाद देश के 40 शहरों में बेचे जा रहे हैं. आर्गेनिक उत्पादों की उनके अनेक गुणों के कारण भारी डिमांड है. स्थानीय स्तर पर बाजार डेवलप किया गया है. बाजार न मिलने के कारण किसान फसलों का उत्पादन धीरे-धीरे छोड़ रहे थे. अब उनके उत्पाद का सही दाम मिल रहा है. इसलिए उत्पादन का रकबा भी लगातार बढ़ रहा है.

स्वाद के लिए खोला ‘कैफे आदिम’

जैविक उत्पादों से बनाए जाने वाले व्यंजनों का स्वाद लोगों को चखाने दंतेवाड़ा में कैफे आदिम खोला गया है. जहां केवल जैविक व्यंजन ही मिलते हैं. रेड राइस से लेकर कोटो, कुटकी तक के अलग-अलग व्यंजन कैफे आदिम में मिलते हैं. आर्गेनिक फूड का यह कैफे दंतेवाड़ा में ही नहीं पूरे प्रदेश में काफी प्रसिद्ध है.

फायदे कई तरह के

जैविक खेती से किसानों को कई फायदे हुए हैं. पहला फायदा तो यह है कि किसानों को जैविक उत्पाद खुद खाने को मिल रहे हैं. इससे उन्हें भरपूर पोषण मिल रहा है. दूसरा, अतिरिक्त उत्पाद को किसान बाजार में बेच पा रहे हैं. उनके लिए बाजार के रास्ते खुल गए हैं और उन्हें दाम भी अच्छे मिल रहे हैं. तीसरा, किस्मों का संरक्षण और संवर्धन हो रहा है. चौथा, बाजार से उनकी निर्भतरा बेहद कम हुई है. खाद, बीज सबका उत्पादन वे स्वयं कर रहे हैं.

आकाश के मुताबिक, ‘खेती को केवल आर्थिक लाभ की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए. खेती परिस्थितिकी तंत्र को भी मजबूत करती हैं. इससे हमारा इको सिस्टम ठीक रहता है. इससे कई तरह के फायदे हैं. आज जरूरत है उन फायदों को समझने की. तभी हम खेती के महत्व हो समझ पाएंगे. जिस दिन हम खेती के महत्व को समझ गए और वह हमारी प्राथमिकता में आ गई, वह बड़े बदलाव का दिन होगा’.
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