छत्तीसगढ़ गाथा डेस्क/
स्वाधीनता संग्राम में छत्तीसगढ़ अंचल के जिन सपूतों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया उनमें बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है. वे कंडेल नहर सत्याग्रह के सूत्रधार थे. यह स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में किसानों का पहला सत्याग्रह था. इसी के कारण 1920 में गांधीजी पहली बार छत्तीसगढ़ आए थे.
बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव का जन्म 28 फरवरी 1989 को धमतरी के कंडेल ग्राम में हुआ. उनके पिता गुलाब बाबू कंडेल और भोथली गांव के मालगुजार थे. उनकी माता का नाम रेवती बाई था. बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव चाहते तो अपनी पैतृक संपत्ति का उपभोग करते हुए ऐश-ओ-आराम की जिंदगी बिता सकते थे. परंतु उन्हें ऐसी जिंदगी पसंद नहीं थी. वे विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति में रुचि लेने लगे थे. वे अंग्रेज सरकार के नीतियों के विरोधी थे. जब देशभर में विरोध की लहरे उठने लगीं तो वे भी इससे अछूते नहीं रह सके.
बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव महात्मा गांधी के विचारों से बहुत प्रभावित थे. उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने 1917 में कांग्रेस की सदस्यता ली थी. कांग्रेस की नीतियों और सिद्धातों के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से 1918 में पं. वामनराव लाखे और 1919 में दादा साहब खपर्डे की अध्यक्षता में राजनीतिक सम्मेलन आयोजित किए गए. इसमें छोटेलाल श्रीवास्तव ने सक्रिय भूमिका निभाई. आगे चलकर उन्होंने कांग्रेस के विभिन्न अधिवेशनों में धमतरी नगर का प्रतिनिधित्व किया.
कंडेल नहर सत्याग्रह
ब्रिटिश सरकार किसानों से सिंचाई कर वसूल करती थी. किसानों पर दबाव था कि वे अंग्रेज सरकार से 10 साल का करार करें. अनुबंध की राशि इतनी अधिक थी कि इससे सिंचाई के लिए गांव में ही एक विशाल तालाब बनाया जा सकता था. इसलिए किसान अनुबंध के लिए तैयार नहीं थे. इसमें बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव की महत्वपूर्ण भूमिका थी. इस घटना को ब्रिटिश सरकार ने प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया.
प्रशासन किसानों की आड़ में बाबू साहब को सबक सिखाने की मंशा रखता था. बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव ने ग्रामीणों के एक साथ बैठक की जिसमें सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि जुर्माना नहीं दिया जाएगा. साथ ही इस अन्याय के विरोध में सत्याग्रह भी किया जाएगा. इस फैसले को तहसील के नेताओं का भी समर्थन प्राप्त हो गया.
अंग्रेज सरकार के फैसले के खिलाफ गांव-गांव में जनसभाओं का आयोजन होने लगा. इससे प्रशासन ने बौखलाकर जुर्माना वसूलने और मवेशियों की जब्ती-कुर्की के आदेश जारी कर दिए. जब्त पशुओं को धमतरी के इतवारी बाजार में नीलामी के लिए लाया गया. मगर एक भी व्यक्ति बोली लगाने नहीं आया. लोग समझ चुके थे कि यह सिंचाई विभाग की अन्यायपूर्ण कार्रवाई है. यह सिलसिला क्षेत्र के अन्य बाजारों में भी दोहराया गया. हर जगह प्रशासन को असफलता मिली. प्रशासन न तो जुर्माना वसूल कर पा रहा था और न ही पशुओं के चारा-पानी का इंतजाम कर पा रहा था. इसके चलते पशु बीमार होने लगे. प्रशासन के सामने यह एक नई समस्या थी. पर दोनों पक्ष झुकने को तैयार नहीं थे.
सितंबर 1920 के पहले सप्ताह में छोटेलाल श्रीवास्तव, पं. सुंदरलाल शर्मा और नारायण राव मेघावाले की उपस्थिति में कंडेल में सभा हुई. इस सभा में सत्याग्रह के विस्तार का निर्णय लिया गया. अंग्रेजों का अत्याचार भी बढ़ने लगा, साथ ही सत्याग्रह भी. इस तरह पांच महीने बीत गए. कंडेल के सत्याग्रहियों ने पत्राचार कर गांधीजी से मार्गदर्शन और नेतृत्व का आग्रह किया. महात्मा गांधी ग्रामीणों के इस आंदोलन से खासे प्रभावित हुए और किसानों का साथ देने 21 दिसंबर 1920 को वे धमतरी पहुंचे. उनके आने की खबर से ही अंग्रेजी हुकूमत से घुटने टेक दिए थे. ग्रामीणों के जब्त गौधन को वापस कर दिया गया. साथ ही जुर्मान की वसूली पर भी तत्काल रोक लगा दी गई. किसान विजयी हुए. सत्याग्रह सफलतापूर्वक संपन्न हुआ.
अपने घर पर खोला पुरस्तकालय
बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव ने धमतरी के मेनोनाइट मिशन विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास की. इस बीच उनके पिताजी का देहांत हो गया और उनकी पढ़ाई रुक गई. इसके बाद उन्होंने स्वयं के घर पर निर्धन और अनाथ बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. वे इन बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के साथ भोजन आदि की व्यवस्था अपने खर्चे पर करते थे. 1914 में उन्होंने अपने निवास पर ही एक सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थापना की जिसका नाम ‘सार्वजनिक श्रीवास्तव पुस्तकालय’ रखा गया. इसमें राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत देश की सभी पत्र-पत्रिकाएं मंगवाई जाती थीं. यह पुस्तकालय धमतरी में आज भी ‘श्री बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव नगरपालिका पुस्तकालय’ के नाम से संचालित है.
स्कूल खोलने बेच दिए मां के जेवर
1919 में बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव के प्रयासों से धमतरी में सार्वजनिक गौशाला की स्थापना की गई. 1920 में कंडेल नहर सत्याग्रह का सफल नेतृत्व करने करने के बाद उनकी गिनती छत्तीसगढ़ अंचल के बड़े नेताओं में होने लगी थी. 1920 में ही जब महात्मा गांधी के नेतृत्व में देशभर में असहयोग आंदोलन चलाया गया, तब छोटेलाल श्रीवास्तव ने सक्रिय रूप से भाग लेते हुए अंग्रेजी स्कूलों का बहिष्कार करने के लिए 1921 में धमतरी में एक राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की. कहा जाता है कि इसके लिए उन्हें अपनी मां के कुछ जेवर भी बेचने पड़े थे. इस विद्यालय में न केवल मध्यप्रदेश बल्कि दिल्ली और बनारस के भी कई विद्वान शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं देने आए थे. विद्यालय में ठाकुर प्यारेलाल सिंह, भोपाल राव पवार और हीरजी भाई शाह जैसे विद्वान शिक्षकों ने अध्यापन किया था. 1924 में ठाकुर प्यारे लाल सिंह विद्यालय के प्रधानाध्यापक बनाए गए.
जंगल सत्याग्रह के कारण गए जेल
1921 में स्वदेशी वस्तुओं के प्रचार-प्रसार के लिए बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव ने खादी उत्पादन केंद्र की स्थापना की. 1922 में श्यामलाल सोम के नेतृत्व में सिहावा में जंगल सत्याग्रह हुआ. इसमें छोटेलाल श्रीवास्तव ने भरपूर सहयोग किया. 1930 में रुद्री नवागांव जंगल सत्याग्राह का भी छोटेलाल श्रीवास्तव ने सफलतापूर्वक नेतृत्व किया और जेल गए. उन्हें 23 अगस्त 1930 को गिरफ्तार किया गया. उन्हें एक वर्ष के कारावास और एक हजार रुपया जुर्माना पटाने की सजा मिली. उन्होंने जुर्माने की राशि जमा करने से इनकार कर दिया तो उनके घर के सामानों की नीलामी कर उसकी वसूली की गई. उन्हें जेल में कड़ी यातनाएं दी गईं, लेकिन वे अपने ध्येय पर हमेशा अडिग रहे.
भारत छोड़ो आंदोलन में भी गए जेल
1935 में बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव के प्रयासों से धमतरी में हिंदू अनाथालय की स्थापना हुई. वे 1937 से 1939 तक धमतरी नगरपालिका परिषद के अध्यक्ष रहे. उन्होंने 1940-41 में व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी भाग लिया. गांधीजी के नेतृत्व में चले 1942 के ऐतिहासिक भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर छह महीने के कारावास की सजा सुनाई गई थी. उन्हें नागपुर जेल में रखा गया था. आजादी के बाद भी वे लोकहित और समाज सुधार के कार्य करते रहे. स्वतंत्रता की 25वीं वर्षगांठ पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने उन्हें ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया. अपने जीवन के अंतिम वर्षों में बाबू साहब राजनीति से विरक्त होकर अपने गांव कंडेल में रहने लगे थे.18 जुलाई 1974 को उनका निधन हो गया.
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