रायपुर की भानु का वेब सिरीज पर जलवा और अब बनीं तमिल फिल्म की हीरोईन

छत्तीसगढ़ गाथा डेस्क/

‘‘तमिल में एक कहावत है- ‘दौड़ कर दूध पीने से बेहतर है चल कर पानी पीना’. मेरी यात्रा चलने की है, दौड़ने की नहीं. दौड़ते हुए आप बहुत बहुत सारी चीजों को नजरअंदाज कर देते हैं, छोड़ देते हैं. मैं चलते हुए अपनी यात्रा के रास्ते में हर चीज को महसूस करना चाहती हूं, जीना चाहती हूं. मुझे अपनी प्रतिभा का लोहा नहीं मनवाना. जो प्रतिभा मेरे पास है, उसी को निखारना है. मैं इतनी बिजी कभी नहीं होना चाहती कि आसमान, चांद-तारे न देख सकूं’’ यह कहना है, देश की टॉप मॉडल और बॉलीवुड एक्ट्रेस टीजे भानु का. वे हाल ही में कबीर खान द्वारा निर्देशित वेबसीरिज ‘द फॉरगॉटन आर्मी’ में दिखाई दी थीं. यह वेबसीरिज अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई है. इसमें भानु के काम को काफी तारीफें मिली हैं. भानु जल्द एक तमिल मूवी के लीड रोल में नजर आने वाली हैं.

आंध्रप्रदेश के विजयनगर में जन्मी और रायपुर में पली-बढ़ी भानु का बॉलीवुड तक का सफर बेहद दिलचस्प रहा. वे जब महज छह महीने की थीं, माता टी. पार्वती और पिता टीबीएसएन मूर्ति के साथ रायपुर आ गई थीं. उनके पिता सिंचाई विभाग में थे जो अब सेवानिवृत्त हो गए हैं. भानु की प्राथमिक शिक्षा उनके घर के पास ‘शांति नगर प्राथमिक कन्या शाला’ में हुई. इसके बाद कालीबाड़ी चौक स्थित दानी गर्ल्स स्कूल से उन्होंने बारहवीं तक की शिक्षा पूरी की. दो भाइयों की छोटी बहन भानु की प्रतिभा स्कूल के समय से दिखने लगी थी. वे बताती हैं, जब वे कक्षा सातवीं में थीं तो लंबी और ऊंची कूद में पहली बार हिस्सा लिया. दोनों में सलेक्ट हुईं और स्टेट तक खेलने गईं.

दसवीं कक्षा में थीं तो बॉलीवाल की स्कूल टीम में सलेक्ट हुईं. नेशनल तक पहुंचीं। उनका सपना देश के लिए खेलना था, लेकिन इंडिया कैंप के ठीक पहले उनके घुटने का लिगामेंट डैमेज हो गया. वे कहती हैं, इंडिया की जर्सी पहनना उनका सबसे बड़ा सपना था. मगर, उनकी चोट ने उनके सपने को तोड़ दिया. खेल छूटना उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा नुकसान था.

स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पुरानी बस्ती के अग्रसेन कॉलेज में बीए जर्नलिज्म एंड मॉस कम्युनिकेशन पाठ्यक्रम में दाखिला लिया. पहले ही वर्ष में न्यूज रीडर के तौर पर काम भी शुरू कर दिया. केबल पर आने वाले एम. चैनल और फिर ग्रैंड न्यूज में उन्होंने एकरिंग की. इसके अलावा जी 24 घंटे छत्तीसगढ़ में भी उन्होंने एकरिंग की, जो अब आईबीसी 24 हो गया है. फाइनल इयर में उन्होंने माय एमएफ ज्वाइन किया और रेडियो जॉकी बनकर अपनी आवाज का जादू बिखेरा. पढ़ने-लिखने का शौक बचपन था. कॉलेज के दिनों में वे रेडियो में थीं और उनके सारे दोस्त प्रिंट मीडिया में. दोस्त जब उनसे मिलने घर आते तो वे उनसे कहतीं कि ला तेरी स्टोरी मैं लिख देती हूं. कई बार दोस्तों की खबरें और स्टोरीज उन्होंने लिखी. ग्रेजुएशन के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के एडवर्टाइजमेंट एंड पब्लिक रिलेशन पाठ्यक्रम में दाखिला लिया.

लगा कि सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है. मगर, सबकुछ ठीक चले ऐसा जिंदगी में कहां होता है. भानु की जिंदगी में भी वह मोड़ आया, जब उन्हें जिंदगी से शिकायतें होने लगीं. उन्होंने डेढ़ साल पुरानी रेडियो जॉकी की नौकरी छोड़ दी और शहर छोड़ने का भी इरादा बना लिया. वे कहती हैं, हर किसी की जिंदगी में एक ऐसा पल जरूर आता है, जब लगता है सब कुछ छोड़कर कहीं चले जाना चाहिए. कभी-कभी कुछ जगहों और लोगों से दूरी बना लेना ही बेहतर होता है. उनकी जिंदगी में भी कुछ ऐसा ही चल रहा था, जब वे शहर और अपने लोगों ने दूर जाना चाहती थीं. वे कहती हैं, अक्सर हमें लगता है कि जिंदगी हम चला रहे हैं, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. हमारी जिदंगी की डोर किसी और के हाथ में हैं. वह डोर खींचते जाता है और हम उसी दिशा में आगे बढ़ते जाते हैं. आप चाहे उसे ईश्वर कहें या कोई और नाम दे दें. शायद उनकी डोर भी कोई और खींच रहा था, जो खींचते हुए उन्हें जादूनगरी मुंबई तक ले गया.

मुंबई जाने की जानकारी अपने पिता टीबीएसएन मूर्ति को दी. पिता ने पूछा, वहां जाकर क्या करोगी? इस सवाल का कोई ठीक-ठीक जवाब उस वक्त भानु के पास नहीं था. कहा ‘कुछ भी कर लूंगी’. पिता ने इसके आगे कुछ नहीं पूछा. बस, इतना कहा कि वहां का एड्रेस टेबल पर छोड़ जाना. उन्हें अपनी बेटी पर यकीन था कि वह कुछ न कुछ बेहतर कर ही लेगी. पिता से ज्यादा यकीन बेटी को था कि वह जरूर कुछ कर लेगी. कुछ नहीं मिला तो टीवी और रेडियो में वाइस ओवर का काम तो मिल ही जाएगा. बस इसी यकीन के साथ भानु ने सामान बांधा और सपनों के शहर मुंबई के लिए निकल पड़ीं.

मुंबई पहुंचीं तो उनके पास कुल जमा 60 हजार रुपए थे, जो उन्होंने टीवी और रेडियो में नौकरी के दौरान कमाए थे. उनके अंदर के आत्मविश्वास की एक वजह ये रुपए भी थे. उन्हें लगा कि जब तक रुपए हैं, तब तक तो मुंबई में रहा ही जा सकता है. जब पैसे खत्म हो जाएंगे, तब देखा जाएगा. मुंबई में पांच हजार रुपए में उन्होंने एक पीजी ले लिया. खाने पर अलग से रोजाना 100 रुपए खर्च होते. कुछ महीने यूं ही कट गए. जिस पीजी में वे रहती थीं, वह एक टू बीएचके फ्लैट था और उसमें कुल 9 लोग रहते थे. इसके कारण सभी को कुछ न कुछ दिक्कतें होती थीं, लेकिन बोलता कोई कुछ नहीं था. भानु को यह सब भा नहीं रहा था. एक दिन उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठा दी. फ्लैट मालिक ने उनका सामान उठाया और सड़क पर रख दिया. वह रात उनके लिए बहुत भयानक थी. एक अकेली लड़की मुंबई की सड़कों पर थी, जिसके पास रात के 12 बजे रहने के लिए कोई जगह नहीं थी, लेकिन उन्होंने इस बात का ज्यादा दुख नहीं मनाया. रात फुटपाथ पर घूमते और पार्क में सोकर गुजारी. सोच रही थीं कि फुटपाथ पर चलते हुए न जाने कितनी रातें हमने यूं ही तफरीह में काटी है. समझ लेते हैं कि आज भी तफरीह पर हैं. वे कहती हैं, मेरा नजरिया हमेशा सकारात्मक रहा है. नकारात्मक विचार कभी हावी नहीं होने पाए.

उन्होंने एक दूसरी जगह पर कमरा ले लिया और विज्ञापनों के लिए ऑडिशन देना शुरू किया. कुछ महीनों में दर्जनों ऑडिशन दिए और रिजेक्ट होती रहीं. पहला काम स्टार प्लस के एक सीरियल में वाइस ओवर का मिला. हालांकि उन्हें इसके कोई पैसे नहीं मिले. इसके बाद स्वतंत्रता दिवस के एक सरकारी कार्यक्रम का उन्होंने वाइस ओवर किया, जिसके उन्हें एक हजार रुपए मिले. लंबे अर्से के बाद पैसे मिले थे तो पहले उन्होंने भरपेट खाना खाया और उस रात सुकून की एक नींद ली. वे बताती हैं, विज्ञापनों के लिए ऑडिशन का दौर चलता रहा और वे रिजेक्ट होती रहीं. तब भी उनका आत्मविश्वास कभी कमजोर नहीं हुआ. वे हमेशा यही सोचती रहीं कि ठीक है, आज तुम मुझे रिजेक्ट कर रहे हो, लेकिन देखना एक दिन मैं तुम्हारी ब्रांड एम्बेसडर जरूर बनूंगी.

महीनों के संषर्घ के बाद आखिरकार एक कार्पोरेट एड मिला, जिसमें उन्हें गांव की लड़की का रोल निभाना था. इस एड के मेहनताने के रूप में उन्हें कुल पांच हजार रुपए मिले. यह उनकी जिंदगी का टर्निंग पाइंट था। एड की शूटिंग के दौरान डॉयरेक्टर सोम शुभ्र सरकार उन्हें ध्यान से देख रहे थे. शूटिंग के बाद उन्होंने बुलाकर पूछा, म्यूजिक जानती हो? उन्होंने कहा हां. फिर उन्होंने पूछा क्या तुम अपनी कहानी ठीक तरीके से बता सकती हो ? उन्होंने फिर कहा हां. सोम शुभ्र सरकार ने उन्हें मिस इंडिया कांटेस्ट में जाने की सलाह दी. उन्हें लगा कि यह लड़की अच्छी मॉडल बन सकती हैं. उस समय भानु को ये सब बेकार की बातें लगीं. उन्होंने सरकार से कहा- मुझे आप अपना असिस्टेंट बना लीजिए, मेरे लिए इतना ही बहुत है. ये मिस इंडिया वगैरह मेरे बस की बात नहीं. उन्होंने कहा, चलो ठीक है, इस पर हम मुंबई पहुंचकर बात करेंगे.

मुंबई पहुंचकर इस पर बात हुई और तय हुआ कि भानु को मिस इंडिया कांटेस्ट में जाना चाहिए. भानु बताती हैं, उस समय उनके पास हाई हील की सैंडल तक नहीं थी और ऊपर से किस्मत इतनी खराब कि जिस दिन सेंट रेजिस होटल में ऑडिशन होना था, उसी दिन उनकी चप्पल भी टूट गई. रैंप पर पैदल तो चल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने एक दूसरी प्रतिभागी की सैंडल उधार मांगी. सैंडल थोड़ी ढ़ीली थी, लेकिन काम चल गया. वे अगले राउंड के लिए सलेक्ट हो गईं, लेकिन जिस लड़की की सैंडल उधार ली थी, वह बाहर हो गई. अगले राउंड के लिए फिर उन्हें किसी से सैंडल उधार लेनी पड़ी. इस तरह वे हर राउंड में उधार की सैंडल पहनकर पांचवें और अंतिम राउंड तक पहुंचीं. वे बताती हैं, दुर्भाग्यवश वे जिस किसी की सैंडल उधार लेतीं, वह अगले राउंड में बाहर हो जाती थी. इसलिए उन्हें बार-बार किसी दूसरे की सैंडल उधार मांगनी पड़ती थी. अंतिम राउंड के लिए उन्होंने दिल्ली की एक मॉडल योशिकी सिंघर की सैंडल उधार मांगी. ऑडिशन ठीक रहा. रिजल्ट में जब उनका नाम पुकारा गया तो वे बाहर हुए लोगों की तरफ जाकर खड़ी हो गईं. उन्हें यकीन नहीं था कि उनका सलेक्शन हो जाएगा. बैच नंबर पुकारे जाने पर किसी ने ताली भी नहीं बजाई तो उन्हें लगा कि उनका नाम रिजेक्शन वाली लिस्ट में है. जज ने उन्हें जीते हुए लोगों की ओर खड़े होने का इशारा किया. उन्होंने कहा कि वे बैच नंबर 117 हैं. जज ने कहा हां, आपको उधर नहीं, इधर खड़े होना है, जिधर सलेक्ट हुए लोग खड़े हैं. उसके बाद सबने ताली बजाई. यानी अब वे मिस इंडिया के फिनाले में थीं. उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि वे इस मुकाम तक पहुंच सकती हैं. इस बार एक और अच्छी बात यह हुई थी कि भानु को अपनी सैंडल देने वाली मॉडल योशिकी का भी सलेक्शन मिस इंडिया फिनाले के लिए हो गया था.

इसके बाद भानु और सभी 19 मिस इंडिया प्रतिभागियों का 40 दिनों तक पलेडियम में रहना हुआ. भानु बताती हैं कि वहां बहुत कुछ सीखने को मिला. देश की टॉप 19 मॉडल फिनाले में थीं, जिनमें से किसी एक के सिर मिस इंडिया का ताज सजना था. वे प्रतियोगिता में 12वें नंबर पर रहीं. उन्हें ‘मिस वाइवेसियस’ और ‘ब्यूटी विथ द परपस’ का टाइटल मिला. उनके लिए यह किसी सपने के पूरे होने से कम नहीं था. मिड इंडिया कांटेस्ट के बारे में बताते हुए वे कहती हैं कि वह केवल बाहरी सुंदरता देखने के लिए नहीं होती. अगर, ऐसा होता तो वे कभी उस मुकाम तक नहीं पहुंच पातीं. उन्हें रैंप पर चलना नहीं आता था, लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि उन्हें कुछ नहीं आता था. उन्हें बोलना अच्छा आता था, उनका जरनल नॉलेज अच्छा था, कांफिडेंस अच्छा था, इस वजह से वे सलेक्ट हुईं.  

मिस इंडिया के पलेडियम से निकलने के बाद भानु की जिंदगी फिर ढर्रे पर आ गई. सोम शुभ्र सरकार ने उन्हें मॉडलिंग एजेंसी ज्वाइन करने की सलाह दी. इसका मतलब यह नहीं था कि उन्हें एड मिलने लगते, लेकिन इससे अवसर जरूर बढ़ जाते. सो उन्होंने मॉडलिंग एजेंसी ज्वाइन कर ली. उनके काम में धीरे-धीरे निखार आने लगा और उन्हें अच्छे-खासे एड मिलने लगे. उन्होंने शादी डॉट कॉम, गूगल पिक्सल टू, फ्री चार्ज, गूगल पे, टीबीजेड ज्वेलर्स, एमजी ज्वेलर्स, ओला, आरके सिल्क, कोनिका मिनाल्टा जैसी दर्जनों कंपनियों के लिए एड किए हैं और लगातार बड़े और नामी ब्रांड के लिए एड कर रही हैं. मॉडलिंग के लिए उन्होंने अमेरिका, इटली, फ्रांस, नीदरलैंड, पोलैंड, दुबई, आयरलैंड, वियतनाम, जर्मनी जैसे 15 देशों की यात्राएं की हैं. जर्मनी में करीब 5 महीने और न्यूयार्क में एक साल रहीं. भानु की तस्वीर न्यूयार्क के म्यूजियम ऑफ माडर्न आर्ट में लगी है. वे कहती हैं, यह उनके लिए काफी प्राउड मोमेंट था.

अनुराग कश्यप ने ज्वाइन करवाई एक्टिंग क्लास

भानु बताती हैं, कास्टिंग डॉयरेक्टर मुकेश छाबड़ा के ऑफिस में एक बार उनकी मुलाकात डायरेक्टर अनुराग कश्यप से हुई थी. मुलाकात बहुत छोटी थी, करीब 30 सेकंड की, लेकिन 6 महीने बाद एक दिन उनसे अचानक मुलाकात हो गई. बातचीत हुई तो उन्होंने पहचान लिया. उन्हें पता चला था कि मैं ब्लॉग लिखती हूं तो उन्होंने ब्लॉग दिखाने को कहा. मैंने मोबाइल पर ही ब्लॉग दिखा दिया. उन्होंने पढ़ा और तारीफ की. उसी दौरान उन्होंने मुझे एक्टिंग वर्कशॉप ज्वाइन करने की सलाह दी. उन्होंने कहा कि तुम्हें एक्टिंग स्किल भी सीखनी चाहिए. जिसके बाद मैंने एक्टिंग क्लास ज्वाइन की.

फॉरगॉटन आर्मी में दमदार भूमिका

वे बताती हैं कि न्यूयार्क से मुंबई लौटने के बाद वे एक एड की शूटिंग करने बैंगलोर गई हुई थीं. उसी समय कास्टिंग डॉयरेक्टर मुकेश छाबड़ा का फोन आया कि एक ऑडिशन देना है. नई लड़की चाहिए, रोल बहुत चैलेंजिंग है. कास्टिंग मुकेश ही कर रहे थे. सप्ताहभर बाद वे मुंबई लौटीं. मुकेश के सामने ऑडिशन दिया और तीसरे दिन बालीवुड के जाने-माने डॉयरेक्टर कबीर खान के सामने लुक टेस्ट के लिए बैठी थीं. वहां टेस्ट देने आए और भी लोग थे. कबीर खान आए. उन्होंने सबसे बात की. फिर सबने एक दूसरे के किरदार बदलकर एक्टिंग की. जाते जाते कबीर ने कहा कि भानु का ऑडिशन ‘ग्रेट’ था, कांट्रेक्ट साइन करते जाना. इस तरह उन्हें ‘द फॉरगॉटन आर्मी’ में काम करने का मौका मिला. वेब सीरीज में उनका रोल काफी दमदार है. उन्हें एक मजबूत लड़की की भूमिका में दिखाया गया है.

तमिल फिल्म में मिला लीड रोल

भानु को एक तमिल फिल्म में लीड रोल मिला है. इस फिल्म को तमिल के मशहूर डायरेक्टर अरुण प्रभु पुरुषोत्तमन ने डायरेक्ट किया है. फिल्म बनकर पूरी हो चुकी है. उसे मई 2020 में रिलीज होना था, लेकिन कोरोना के कारण रिलीज नहीं की गई है. फिल्म का टीजर रिलीज हो चुका है. डॉयरेक्टर अरुण प्रभु पुरुषोत्तमन को तमिल फिल्म अरुवि के लिए अवार्ड मिल चुका है. भानु ने फिल्म में ‘आरती’ का रोल लिया है. यह रोल पुरुषोत्तमन ने भानु को खुद ऑफर किया था. भानु को हिंदी फिल्मों के भी कई ऑफर हैं, जिनमें से वे कुछ को आने वाले वक्त में करना चाहती हैं.

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