विनोद कुमार शुक्ल: कविताओं की तरह सरल और अपने गद्य की तरह विरल

रमेश अनुपम/

 

‘अपने अकेले होने को
एक-एक अकेले के बीच रखने
अपने को हम लोग कहता हूं
कविता की अभिव्यक्ति के लिए
व्याकरण का अतिक्रमण करते
एक बिहारी की तरह कहता हूं
कि हम लोग आता हूं
इस कथन के साथ के लिए
छत्तीसगढ़ी में-हमन आवत हन

तुम हम लोग हो
वह भी हम लोग हैं’.

विनोद कुमार शुक्ल

कविता और गद्य की अभिव्यक्ति के लिए व्याकरण का अतिक्रमण करने वाले और एक जिद की तरह अपने लिए एक अलग शिल्प और भाषा गढ़ने वाले विनोद कुमार शुक्ल अगले 1 जनवरी को 83 वर्ष की आयु पूर्ण कर 84 वर्ष में प्रवेश करने जा रहे हैं. विनोद कुमार शुक्ल जब कृषि महाविद्यालय रायपुर में अध्यापक के पद पर नियुक्त होकर आए तब उनका पता था द्वारा डॉ. जीपी श्रीवास्तव का कम्पाउंड, कटोरा तालाब, रायपुर. यह उनका किराए का मकान था. अब पिछले कई वर्षों शैलेन्द्र नगर में उनके स्वयं का मकान बन जाने पर उनका पता बदल गया है, सी-217 शैलेन्द्र नगर, रायपुर.

डॉ. जीपी श्रीवास्तव वाले मकान की अनेक स्मृतियां आज भी विनोद जी की आंखों में झिलमिलाती दीख ही जाती हैं, जहां वे अपनी मां, पत्नी और दो छोटे बच्चों के साथ रहा करते थे. ‘लगभग जय हिंद’ उन्हीं दिनों की देन है, जिसे अशोक वाजपेयी ने सन् 1971 में ‘पहचान’ सीरीज के अंर्तगत प्रकाशित किया था.

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के एक प्रतिष्ठित परिवार में 1 जनवरी सन् 1937 में जन्म लेने वाले विनोद कुमार शुक्ल पर सर्वाधिक प्रभाव उनकी मां स्व. रूखमणि देवी का पड़ा है. इसलिए विनोद कुमार शुक्ल उस कांसे के गिलास को न केवल अब तक संभाल कर रखे हुए हैं, बल्कि उसी गिलास से आज तक पानी भी पीते हैं, जिस गिलास का उपयोग कभी उनकी मां किया करती थीं. विनोद कुमार शुक्ल की धर्मपत्नी श्रीमती सुधा शुक्ल, जिन्हें विनोद जी की तरह किताबें पढना बेहद पसंद है, उन्होंने भी अपनी सास द्वारा दिये गए बाजूबंध को जो सोने में मोतियों से जड़ा हुआ है, अब तक संभाल कर रखा हुआ है. अलबत्ता श्रीमती सुधा शुक्ल के सारे आभूषण शैलेंद्र नगर में मकान बनवाते समय बिक चुके हैं.

शैलेंद्र नगर वाला मकान भी उन्हीं की जिद के चलते संभव हुआ था. लेखन के अलावा विनोद कुमार शुक्ल का एक और भी संसार है. वह संसार है अतीत की स्मृतियों में बार-बार लौटने की इच्छा, खासकर अपने बचपन और शैशवावस्था के दिनों की स्मृतियों में. राजनांदगांव का कृष्णा टॉकीज विनोद जी के बचपन का सबसे प्रबल आकर्षण का केंद्र रहा है. कृष्णा टॉकीज को जहां वे बचपन में फिल्में देखा करते थे, उसे विनोद कुमार शुक्ल कभी भूला नहीं पाए. आज भी कृष्णा टॉकीज की बाते करते हुए उनके आंखों में पुराने दिनों की चमक कौंध उठती है.

जब कृष्णा टॉकीज में ‘बैजू बावरा’ फिल्म लगी तो उन्होंने एक बार नहीं, इस फिल्म को कई-कई बार देखा था. उन्हें तब मालूम था कि रात में ठीक आठ बजकर दस मिनट पर ‘बैजू बावरा’ का प्रसिद्ध गीत ‘ओ दुनिया के रखवाले, सुन दर्द भरे मेरे नाले’ का दृश्य आता है. बालक विनोद रोज रात में ठीक आठ बजकर दस मिनट का इंतजार किया करते थे. आठ बजे के आसपास वे नियमपूर्वक कृष्णा टॉकीज में घुसकर वह गाना जरूर सुनते थे. इस गाने ने एक तरह से बालक विनोद की नींद छीन ली थी.

टॉकीज के गेटकीपर विनोद कुमार शुक्ल के परिवार को भलीभांति जानते थे और इस परिवार की प्रतिष्ठा से भी अच्छी तरह परिचित थे. इसलिए बालक विनोद बेरोक-टोक जब चाहे कृष्णा टॉकीज में आ-जा सकते थे.

मां और पिता की स्मृतियां आज भी विनोद जी को विचलित कर देती हैं. मां रुखमणि देवी बंगाल से आई थीं. उनके पिता जमातपुर बांग्लादेश के निवासी थे. पद्मा नदी के किनारे उनका गांव था. गांव में उनका परिवार सबसे समृद्ध परिवार माना जाता था. विनोद जी के नाना सन् 1931-32 में साम्प्रदायिक दंगे में उस समय मारे गए थे जब वे पद्मा नदी में नहाने गए हुए थे. मां की शादी चौदह वर्ष की अल्पायु में ही हो गई थी. पिता शिवगोपाल शुक्ल की अनेक स्मृतियां विनोद जी की स्मृतिपटल पर आज भी शाश्वत है.

विनोद कुमार शुक्ल का पूरा जीवन साहित्यिक आभा एवं गरिमा से दीप्त रहा है. हिंदी में ही नहीं अनेक विदेशी भाषाओं में भी उनके उपन्यास, कहानियां और कविताएं अनुिदत होकर विश्वसाहित्य में अपनी जगह बना चुके हैं. सुप्रसिद्ध फिल्म निदेशक मणिकौल ने उनके पहले उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ पर एक सुंदर फिल्म भी बनाई है. उनकी कहानी ‘आदमी की औरत’, ‘पेड़ पर कमरा’ पर अमीत दत्ता द्वारा फिल्म का निर्माण किया जा चुका है.

विनोद कुमार शुक्ल को प्राप्त अब तक के सम्मानों में रजा पुरस्कार, शिखर सम्मान, राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, दयामती मोदी कवि शेखर सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा हिंदी गौरव सम्मान उल्लेखनीय हैं. इन दिनों विनोद जी बच्चों पर कहानी और कविताएं लिखने में ज्यादा मशगूल हैं. बच्चों के लिए वे ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़’, ‘यासि रासा त’ तथा ‘एक चुप्पी जगह वर्ष’ जैसी अद्वितीय कृतियों का सृजन कर चुके हैं. परिवार में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुधा शुक्ल के अतिरिक्त सुपुत्र शाश्वत गोपाल शुक्ल, पुत्रवधू श्रीमती दीपा शुक्ल तथा दस वर्षीय नातिन तरूश शाश्वती शुक्ल शामिल हैं. सुपुत्री विचारदर्शिनी जो घर में सबसे बड़ी हैं वे शादी के उपरान्त नागपुर में रहती हैं.

शैलेंद्र नगर स्थित विनोद जी का घर पत्नी, सुपुुत्र, पुत्रवधू, नातिन की उपस्थिति के उजास में हमेशा जगर-मगर रहता है. इसमें कोई शक नहीं कि विनोद जी को ऊर्जा और प्रेरणा भी अपने घर और परिवार से ही लगातार मिलती रही है. विनोद जी के बारे में यह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि विनोद कुमार शुक्ल अपनी कविताओं की तरह सरल और अपने गद्य की तरह विरल हैं.

(लेखक वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी हैं)

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